अलंकार किसे कहते हैं?
अलंकार शब्द का शाब्दिक अर्थ आभूषण होता हैं| काव्य रूपी काया की शोभा बढ़ाने वाले अव्यय को अलंकार कहते हैं| जिस प्रकार गहनों से आभूषित होकर कोई कामिनी अधिक आकर्षक लगती हैं, उसी प्रकार काव्य भी अलंकारों से आभूषित होकर अत्यधिक आकर्षक हो जाता हैं| अलंकार केवल वाणी की सजावट ही नहीं करते बल्कि भाव की अभिव्यक्ति के लिए भी विशेष द्वार हैं|
अलंकार के प्रकार
अलंकार तीन प्रकार के होते है-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयालंकार के भी कई भेद हैं, जिसका विवरण इस पोस्ट में दिया गया हैं|
अलंकार के 10 उदाहरण
- सपने सुनहले मन भाये|
- सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं|
- वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे|
- राम के समान शम्भु सम राम है|
- सखर सुकोमल मंजु, दोषरहित दूषण सहित|
- जिसकी समानता किसी ने कभी पाई नहीं; पाई के नहीं है अब वे ही लाल माई के|
- रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून| पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून||
- नवल सुन्दर श्याम-शरीर की, सजल नीरद-सी कल कान्ति थी|
- बीती विभावरी जाग री, अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा नागरी|
- फूले कास सकल महि छाई| जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई||
अलंकार के भेद उदाहरण सहित
अलंकार के तीन भेद होते हैं-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
शब्दालंकार
जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उत्पन्न हो जाता है, उसे शब्दालंकार कहते है| शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है- शब्द + अलंकार| शब्द के दो रूप होते हैं- ध्वनि और अर्थ| ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की रचना होती हैं|
शब्दालंकार के भेद
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- शलेष अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार की परिभाषा
वर्णो की आवृत्ति को अनुप्रास अलंकार (anupras alankar) कहते हैं| दूसरे शब्दों में स्वर की समानता के बिना भी वर्णो की बार-बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है|
अनुप्रास अलंकार के प्रकार
अनुप्रास के तीन प्रकार है- छेकानुप्रास, वृत्यनुप्रास और लाटानुप्रास|
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण
- मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत्र बुलाए|
- रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठे साँसें भरि आँसू भरि कहत दई दई|
- बंदउँ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा|
- सपने सुनहले मन भाये|
- सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं|
- तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ, तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ|
2. यमक अलंकार की परिभाषा
जिस काव्य में समान शब्द के अलग-अलग अर्थो में आवृति हो, उसे यमक अलंकार कहते हैं| यमक शब्द का अर्थ होता है- दो| जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग- अलग आये वह पर यमक अलंकार होता हैं|
यमक अलंकार के उदाहरण
- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। वा खाये बौराय नर, वा पाये बौराय।।
- जिसकी समानता किसी ने कभी पाई नहीं; पाई के नहीं हैं अब वे ही लाल माई के।
3. वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं| दूसरे शब्दों में जहाँ किसी के कथन का कोई दूसरा व्यक्ति उच्चारण के ढंग से दूसरा अर्थ करे, उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं|
वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण
- एक कह्यौ ‘वर देत भव, भाव चाहिए चित्त’। सुनि कह कोउ ‘भोले भवहिं भाव चाहिए ? मित्त’||
4. श्लेष अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकले वहां पर श्लेष अलंकार (shlesh alankar) होता हैं|
श्लेष अलंकार के प्रकार
श्लेष अलंकार के दो भेद होते है- अभंग श्लेष अलंकार और संभग श्लेष अलंकार|
श्लेष अलंकार के उदाहरण
- माया महाठगिनि हम जानी। तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।
- चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर। को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर।
अर्थालंकार
जहाँ पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो वहाँ अर्थालंकार होता हैं| दूसरे शब्दों में अर्थ के द्वारा चमत्कार उत्पन्न करते हैं, वे अर्थालंकार कहलाते हैं| जैसे- उपमा, रूपक आदि|
अर्थालंकार के भेद
- उपमा
- रूपक
- उत्प्रेक्षा
- अतिशयोक्ति
- दृष्टान्त
- उपमेयोपमा
- प्रतिवस्तूपमा
- अर्थान्तरन्यास
- काव्यलिंग
- उल्लेख
- विरोधाभास
- स्वभावोक्ति अलंकार
- सन्देह
- मालोपमा
- अनन्वय
- प्रतीप
- भ्रांतिमान्
- अपहुति
- दीपक
- तुल्योगिता
- निदर्शना
- समासोक्ति
- अप्रस्तुतप्रशंसा
- विभावना
- विशेषोक्ति
- असंगति
- परिसंख्या
1. उपमा अलंकार की परिभाषा
उपमा शब्द का अर्थ होता है- तुलना| जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु से की जाये वहां पर उपमा अलंकार होता हैं|
उपमा अलंकार के उदाहरण
- सागर -सा गंभीर ह्रदय हो, गिरी -सा ऊँचा हो जिसका मन|
2. रूपक अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहां रूपक अलंकार (rupak alankar) होता है| दूसरे शब्दों में जहाँ पर उपमेय और उपमान के बिच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता हैं, वहाँ पर रूपक अलंकार होता हैं|
रूपक अलंकार के उदाहरण
- उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग| विगसे संत- सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग||
3. उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए| वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता हैं|
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
- फूल कास सकल महि छाई| जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई||
4. अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहाँ किसी का वर्णन इतना बढ़ा- चढ़कर किया जाय कि सीमा या मर्यादा का उल्लंघन हो जाये, वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता हैं|
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण
- बाँधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से, मणिवाले फणियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से|
5. दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा
जब दो वाक्यो में दो भिन्न बातें बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से प्रकट की जाती है, उसे दृष्टान्त अलंकार कहते हैं|
दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण
- एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं| किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती हैं||
6. उपमेयोपमा अलंकार की परिभाषा
उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की प्रक्रिया को उपमेयोपमा अलंकार कहते हैं|
उपमेयोपमा अलंकार के उदाहरण
- तौ मुख सोहत हैं ससि सो अरु सोहत है ससि तो मुख जैसो|
7. प्रतिवस्तूपमा अलंकार की परिभाषा
जहाँ उपमेय और उपमान के पृथक-पृथक वाक्यों में एक ही समानधर्म दो भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा कहा जाय, वहाँ प्रतिवस्तूपमा अलंकार होता हैं|
प्रतिवस्तूपमा अलंकार के उदाहरण
- सिंहसुता क्या कभी स्यार से प्यार करेगी? क्या परनर का हाथ कुलस्त्री कभी धरेगी?
8. अर्थान्तरन्यास अलंकार की परिभाषा
जब किसी सामान्य कथन से विशेष कथन का अथवा विशेष कथन से सामान्य कथन का समर्थन किया जाये वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता हैं|
अर्थान्तरन्यास अलंकार के उदाहरण
- बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाए| कहत धतूरे सों कनक, गहनों गढ़ो न जाए||
9. काव्यलिंग अलंकार की परिभाषा
किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं|
काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण
- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय| उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए||
10. उल्लेख अलंकार की परिभाषा
जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाये वहाँ पर उल्लेख अलंकार होता हैं|
उल्लेख अलंकार के उदाहरण
- तू रूप है किरण में, सौन्दर्य है सुमन में, तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में|
11. विरोधाभास अलंकार की परिभाषा
जहाँ विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास दिया जाय, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता हैं|
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण
- आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के| शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें||
12. स्वभावोक्ति अलंकार की परिभाषा
किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं|
स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण
- सीस मुकुट कटी काछनी, कर मुरली उर माल| इहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल||
13. सन्देह अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता हैं|
सन्देह अलंकार के उदाहरण
- यह काया है या शेष उसी की छाया, क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया|
14. मालोपमा अलंकार की परिभाषा
यदि एक वस्तु की अनेक वस्तुओं से उपमा दी जाय तो वहाँ मालोपमा अलंकार होती हैं| मालोपमा का अर्थ माला+उपमा अर्थात जहाँ उपमा की माला ही बन जाय|
मालोपमा अलंकार के उदाहरण
- सिंहनी-सी काननों में, योगिनी-सी शैलों में, शफरी-सी जल में, विहंगिनी-सी व्योम में, जाती अभी और उन्हें खोजकर लाती मैं|
15. अनन्वय अलंकार की परिभाषा
एक ही वस्तु को उपमेय और उपमान दोनों बना देना अनन्वय अलंकार कहलाता हैं|
अनन्वय अलंकार के उदाहरण
- निरुपम न उपमा आन राम समानु राम, निगम कहे|
16. प्रतीप अलंकार की परिभाषा
प्रसिद्ध उपमान को उपमेय बना देना प्रतीप अलंकार कहलाता हैं|
प्रतीप अलंकार के उदाहरण
- नेत्र के समान कमल हैं|
17. भ्रांतिमान् अलंकार की परिभाषा
जब उपमेय में उपमान के होने का भ्रम हो जाये वहाँ पर भ्रांतिमान अलंकार होता हैं|
भ्रांतिमान् अलंकार के उदाहरण
- पायें महावर देन को नाईन बैठी आय| फिरि-फिरि जानि महावरी, एडी भीड़त जाये||
18. अपहुति अलंकार की परिभाषा
जब किसी सत्य बात या वस्तु को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु की स्थापना की जाती है, वहाँ अपहुति अलंकार होता हैं|
अपहुति अलंकार के उदाहरण
- सुनहु नाथ रघुवीर कृपाला, बन्धु न होय मोर यह काला|
19. दीपक अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहां पर दीपक अलंकार होता हैं|
दीपक अलंकार के उदाहरण
चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज| अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज||
20. तुल्योगिता अलंकार की परिभाषा
जहाँ अनेक प्रस्तुतों अथवा अप्रस्तुतों का एकधर्म-सम्बन्ध वर्णित हो वहाँ तुल्योगिता अलंकार होता हैं|
21. निदर्शना अलंकार की परिभाषा
जहाँ वस्तुओं का पारस्परिक संबंध संभव अथवा असंभव होकर सदृश्यता का आधान करे, वह निदर्शना अलंकार होता हैं|
22. समासोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहाँ प्रस्तुत के वर्णन में अप्रस्तुत की प्रतीति हो वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है| समासोक्ति का अर्थ है- संछिप्त कथन|
23. अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार की परिभाषा
जहाँ अप्रस्तुत के वर्णन में प्रस्तुत की प्रतीति हो, वहाँ अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार होता हैं|
अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार के उदाहरण
- क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो| उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो||
24. विभावना अलंकार की परिभाषा
कारण के अभाव में जहाँ कार्योत्पत्ति का वर्णन किया जाय वहाँ विभावना अलंकार होता हैं| विभावना का अर्थ है विशिष्ट कल्पना|
25. विशेषोक्ति अलंकार की परिभाषा
कारण के रहते हुए कार्य का न होना विशेषोक्ति अलंकार कहलाता हैं| विशेषोक्ति का अर्थ है- विशेष उक्ति|
विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण
सोवत जागत सपन बस, रस रिस चैन कुचैन| सुरति श्याम घन की सुरति, बिसराये बिसरै न||
26. असंगति अलंकार की परिभाषा
जहाँ कारण कहीं और कार्य कही होने का वर्णन किया जाय वहाँ असंगति अलंकार होता हैं| जहाँ कारण होता है, कार्य वही होना चाहिए|
असंगति अलंकार के उदाहरण
तुमने पैरों में लगाई मेंहदी, मेरी आँखों में समाई मेंहदी|
27. परिसंख्या अलंकार की परिभाषा
एक वस्तु की अनेकत्र संभावना होने पर भी, उसका अन्यत्र निषेध कर, एक स्थान में नियमन परिसंख्या अलंकार कहलाता हैं|
परिसंख्या अलंकार के उदाहरण
दंड जतिन कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज| जीतौ मनसिज सुनिय अस रामचंद्र के राज||
उभयालंकार
जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते है, वे उभयालंकार कहलाते हैं| उदाहरण के लिए- कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय|
उभयालंकार के भेद
- संसृष्टि
- संकर
1. संसृष्टि
तिल-तंडुल-न्याय से परस्पर निरपेक्ष अनेक अलंकारों की स्थिति संसृष्टि अलंकार है| संसृष्टि में कई शब्दालंकार, कई अर्थालंकार अथवा कई शब्दालंकार और अर्थालंकार एक साथ रह सकते है|
2. संकर
नीर-क्षीर-न्याय से परस्पर मिश्रित अलंकार संकर अलंकार कहलाता हैं| जैसे- नीर-क्षीर अर्थात पानी और दूध मिलकर एक हो जाते है, वैसे ही संकर अलंकार में कई अलंकार इस प्रकार मिल जाते हैं, जिनका पृथक्करण संभव नहीं होता हैं|
पूछे जाने वाले प्रश्न
अलंकार की परिभाषा (alankar ki paribhasha)- जो किसी वस्तु को अलंकृत करे उसे अलंकार कहते हैं| अलंकार का शाब्दिक अर्थ आभूषण होता हैं| उदाहरण-
राम के समान शम्भु सम राम है|
सखर सुकोमल मंजु, दोषरहित दूषण सहित|
सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं|
अलंकार तीन प्रकार के होते है- शब्दालंकार, अर्थालंकार और उभयालंकार|
यह 27 प्रकार के होते हैं|
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