रस किसे कहते हैं? (Ras kise kahate hain)
काव्य पढ़ते या सुनते समय जो आनंद मिलता है, उसे रस कहते हैं। रस का शाब्दिक अर्थ आनन्द होता हैं| रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। रस के कारण ही काव्य पढ़ने और नाटक देखने वाले लोगों को आनंद मिलता है। भोजन रस के बिना यदि नीरस है, औषध रस के बिना यदि निष्प्राण है, तो साहित्य भी रस के बिना निरानंद हैं|
यही रस साहित्यानंद को ब्रह्मानंद-सहोदर बनाता है। अर्थात जिसका आस्वादन किया जाय, वह रस है। जिस तरह से लजीज भोजन से जीभ और मन को तृप्ति मिलती है, ठीक उसी तरह मधुर काव्य का रसास्वादन करने से ह्रदय को आनंद मिलता हैं| यह आनंद अलौकिक और अकथनीय होता है। साहित्य में रस काबड़ा ही महत्त्व माना गया है।
रस के उदाहरण
रस के कुछ उदाहरण निचे दिया गया हैं-
मन रे तन कागद का पुतला|
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना|| – शांत रस
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे|
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे|| – रौद्र रस
सती दिख कातुक नच जाता,
आगे राम रहित सिय भ्राता|| – अद्भुत रस
रस के अंग
रस (Ras) के चार अंग होते है-
- विभाव
- अनुभाव
- व्यभिचारी भाव
- स्थायी भाव
विभाव
जो व्यक्ती, पदार्थ, अन्य व्यक्ति के ह्रदय के भावों को जगाते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं| विशेष रूप से भावों को प्रकट करने वालो को विभाव रस कहते हैं| स्थायी भाव के प्रकट होने का मुख्य कारण आलम्बन विभाव होता हैं| इसी की वजह से रस की स्थिति होती हैं|
विभाव के भेद
विभाव के तीन भेद हैं-
- आलंबन विभाव– जिस कारण से स्थायी भाव जाग्रत हो, उसे आलम्बन विभाव कहते हैं|
- उद्दीपन विभाव– स्थायी भाव को जाग्रत रखने में सहायक कारण उद्दीपन विभाव कहलाता हैं|
- आश्रय विभाव– जिनके ह्रदय में भाव जागते हैं, उन्हें आश्रय विभाव कहते हैं|
अनुभाव
आलम्बन और उद्यीपन विभावों के कारण उत्पत्र भावों को बाहर प्रकाशित करने वाले कार्य अनुभाव कहलाता हैं| दूसरे शब्दों में, जो भावों का अनुगमन करते हों तथा जो भावों का अनुभव कराते हों, उसे अनुभाव कहते हैं|
अनुभाव के भेद
अनुभाव के पांच भेद है-
- कायिक
- वाचिक
- मानसिक
- आहार्य
- सात्विक
व्यभिचारी भाव
मन में संचरण करने वाले भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं| व्यभिचारी भाव स्थायी भावो के सहायक हैं, जो अनुकूल परिस्थितियों में घटते- बढ़ते हैं|
स्थायी भाव
रस के मुलभुत कारण को स्थायी भाव कहते हैं| दूसरे शब्दों में ह्रदय में मूलरूप से विध्यमान रहने वाले भावो को स्थायी भाव कहते हैं| स्थाईभावो की स्थिति काफी हद तक स्थायी रहती हैं|
रस के प्रकार
रस (Ras) के ग्यारह भेद होते हैं-
- श्रृंगार रस: नायक-नायिका के प्रेम को देखकर श्रृंगार रस प्रकट होता हैं|
- हास्य रस: जहाँ किसी काव्य को पढ़ने, देखने व सुनने से ह्रदय में जो आनन्द की अनुभूति होती हैं, वहाँ हास्य रस होता हैं|
- करुण रस: इष्ट वस्तु की हानि, अनिष्ट वस्तु का लाभ, प्रिय का चिरवियोग, अर्थ हानी आदि से जहाँ शोकभाव की परिपुष्टि होती हैं, वहाँ करुण रस होता हैं|
- वीर रस: किसी कठिन कार्य को करने अथवा युद्ध के लिए ह्रदय में निहित उत्साह स्थायीभाव के जागृत होने से जो स्थायी भाव उत्पन्न होता हैं, उसे वीर रस कहा जाता हैं|
- रौद्र रस: जब किसी प्रिय वास्तु के अपमान होने के कारण ह्रदय में जो बदला लेने की भावना उत्पन्न होती हैं| वहाँ रौद्र रस उत्पन्न होता हैं|
- भयानकरस: भयप्रद वस्तु या घटना देखने व सुनने आदि से भय का संचार होता है, यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाध्य हो जाता हैं, वहाँ भयानक रस होता हैं|
- बीभत्सरस: अरुचिकर वस्तुएँ तथा दुर्गंधपूर्ण स्थान के विवरण में बीभत्सरस होता हैं|
- अदभुतरस: आश्चर्यजनक एवं विचित्र वस्तु के देखने व सुनने से जब आश्चर्य का परिपोषण हो, तब वहाँ अद्भुत रस होता हैं|
- शांत रस: जहाँ संसार के प्रति निर्वेद रस रूप में परिणत होता हैं, वहां शांत रस होता हैं|
- वत्सलरस: जहाँ माँ- बाप का अपनी संतान के प्रति जो प्रेम होता हैं, उसमे वात्सल्य रस होता हैं|
- भक्तिरस: जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम उनके गुणों का गान करना तथा उनकी प्रशंसा करने में भक्ति रस की व्यंजना होता होता हैं|
पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQs
हास्य रस का उदाहरण-
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप|
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता| -(काका हाथरसी)
करुण रस का उदाहरण-
सोक बिकल सब रोवहिं रानी|
रूपु सीलु बलु तेज बखानी||
करहिं विलाप अनेक प्रकारा ||
परिहिं भूमि तल बारहिं बारा|| -(तुलसीदास)
रस 11 (ग्यारह) प्रकार के होते हैं|
रस के अवयव चार होते है- विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव और स्थायी भाव|
रस के जनक भरत मुनि थे?
जहाँ किसी काव्य को पढ़ने, देखने व सुनने से ह्रदय में जो आनन्द की अनुभूति होती हैं, वहाँ हास्य रस होता हैं|
रस के चार अंग होते है- विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव और स्थायी भाव|
श्रृंगार रस के उदाहरण-
पीर मेरी कर रही गमगीन मुझको
और उससे भी अधिक तेरे नयन का नीर, रानी
और उससे भी अधिक हर पाँव की जंजीर, रानी|
वीर रस के उदाहरण-
वीर तुम बढे चलो, धीर तुम बढे चलो|
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो|
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं||
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