भाषा (Bhasha) किसे कहते हैं?
भाषा (Bhasha) वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावो या विचारो का आदान- प्रदान करता है| भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है, जिसका अर्थ ‘बोलना’ या ‘कहना’ है| डॉ श्यामसुंदर दास के अनुसार- “मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओ के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्ति ध्वनि- संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है|”
किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने भावनाओ को दर्शाने के लिए भाषा का महत्व काफी होता है| अपने विचारो को प्रकट करने के लिए भाषा के किसी भी रूप अर्थात मौखिक, लिखित या सांकेतिक भाषा का पालन करना अनिवार्य है| बिना इन किसी भी रूप के पालन किये बिना विचारो का आदान-प्रदान नहीं हो सकता है| भाषा द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है|
भाषा के प्रकार | भाषा के भेद
भाषा (Bhasha) के 3 भेद होते है-
- मौखिक भाषा
- लिखित भाषा
- सांकेतिक भाषा
मौखिक भाषा
भाषा का वह रूप जिसमे वक्ता बोलकर अपनी भावनाये प्रकट करता है, और श्रोता सुनकर वक्ता की बात को समझता है, उसे मौखिक भाषा कहते है| दूसरे शब्दों में- जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है| यह भाषा का प्राचीनतम रूप है| मनुष्य ने पहले बोलना सीखा| इस रूप का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता है|
मौखिक भाषा की विशेषता
- यह भाषा का मूल रूप है|
- इस भाषा का प्रयोग जब व्यक्ति आमने-सामने हो तब भी कर सकते है| और जब व्यक्ति बहुत दूर हो तब भी बिभिन्न उपकरणों के माध्यम से कर सकते है|
- यह भाषा का अस्थाई रूप है|
- इस रूप की आधारभूत इकाई ध्वनि है|
- विभिन्न ध्वनिओ के संयोग से शब्द बनते है, जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता है|
लिखित भाषा
भाषा का वह रूप जिसमे एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है, तथा दूसरा पढ़कर उसे समझता है, उसे लिखित भाषा कहते है| दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हो की सहायता से हम अपने मन के विचारो को लिखकर देते है, वह लिखित भाषा कहलाता है|
लिखित भाषा के लिए लिपि का होना आवश्यक है| लिखित भाषा की इकाई वर्ण है| उच्चारित भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद में हुआ है| मौखिक भाषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिए लिखित चिन्हो का विकास हुआ|
लिखित भाषा की विशेषता
- इस भाषा में हम अपने विचारो को अनंत काल के लिए सुरक्षित रख सकते है|
- यह उच्चरित ध्वनिओ को अभिव्यक्त करते है|
- इसमें वक्ता और श्रोता का आमने-सामने रहना आवश्यक नहीं है|
सांकेतिक भाषा
भाषा का वह रूप जिसमे व्यक्ति अपने विचारो या भावो को संकेतो द्वारा एक दूसरे को प्रकट करते है, उसे सांकेतिक भाषा कहते है| इस भाषा का अधिकतर उपयोग बच्चे और गूंगे व्यक्ति द्वारा किया जाता है| इस भाषा का प्रयोग यातायात में भी किया जाता है| जैसे- रोड या रेलवे पर सिग्नल (signals), हाथो द्वारा सिपाही का सिग्नल दिया जाना| इसी तरह ship या airoplane को सावधानीपूर्वक चलन के लिए दिया जाने वाला सिग्नल इत्यादि|
सांकेतिक भाषा की विशेषता
- जो व्यक्ति बोल या लिख नहीं सकते वो इस भाषा का प्रयोग करते है, जिससे वे अपने भावो को आसानी से प्रकट कर सकते है|
- इस भाषा का प्रयोग एक आम इंसान अपने जीवन में किसी न किसी कारण से जरूर करता है|
- जब व्यक्ति किसी कारणवश अपने विचारो को चाह कर भी बोलकर या लिखकर प्रकट नहीं कर पाते तो, वे सांकेतिक भाषा द्वारा प्रकट करते है|
हिंदी भाषा का विकास
हिंदी भाषा पुरे भारत में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा है| ज्यादातर राज्यों में यह भाषा बोली जाती है, लेकिन जलवायु में भिन्नता और भिन्न-भिन्न रहन-सहन के कारण इसके बोलचाल में थोड़ा-बहुत अंतर आ जाती है| उदाहरण-
- राजस्थानी हिंदी का विकास ‘अपभ्रंश’ से हुआ है|
- पश्चिमी हिंदी का विकास ‘शौरसेनि’ से हुआ है|
- पूर्वी हिंदी का विकास ‘अर्धमागधी’ से हुआ है|
- बिहारी हिंदी का विकास ‘मागधी’ से हुआ है|
- पहाड़ी हिंदी का विकास ‘खस’ से हुआ है|
भाषा का उद्देश्य
भाषा का उद्देश्य है, किसी न किसी तरह दो या दो से अधिक व्यक्तिओ के बिच अपने विचारो और भावनाओ को आदान-प्रदान करना| व्यक्ति अपनी भावनाये 3 तरह से व्यक्त कर सकता है- बोलकर, लिखकर और संकेतो द्वारा| प्राचीनकाल में कोई भी भाषा (Bhasha) नहीं थी| धीरे-धीरे उनलोगो ने अपने विचारो को दर्शाने के लिए बोलने का प्रयास किया|
इस प्रकार मौखिक भाषा का जन्म हुआ| इसके बाद उन्हें अपने विचारो को दूर सन्देश पहुंचाने के लिए लिखित भाषा का जन्म हुआ| सांकेतिक भाषा के लिए कोई ठोस मत नहीं है, कि इसका जन्म सबसे पहले हुआ या सबसे बाद में|
भाषा के विविध रूप
हर देश में भाषा के तीन रूप होते हैं-
- बोलियाँ: स्थानीय बोलियाँ जो आमतौर पर अपने समूह या घरों में बोली जाती हैं, बोलियाँ कहलाती हैं। ये बोलियाँ एक निश्चित सीमित क्षेत्र में ही बोली जाती हैं।
- परिष्कृत भाषा: जब कोई बोली व्याकरण की दृष्टि से परिष्कृत हो जाती है, तो उसे परिष्कृत भाषा कहते हैं। पहले खड़ीबोली बोली जाती थी, आज वह परिष्कृत भाषा बन गई है। जब कोई भाषा व्यापक शक्ति प्राप्त कर लेती है, तो बाद में राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर उसे राजभाषा या राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल जाता है।
- राष्ट्रीय भाषा: जब कोई भाषा किसी राष्ट्र के अधिकांश क्षेत्रों में बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, तो उसे राष्ट्रीय भाषा कहते हैं। इस भाषा का प्रयोग देश के अधिकांश निवासियों द्वारा किया जाता है।
भाषा के अन्य रूप
मातृभाषा: वह भाषा जिसे बच्चा अपने परिवार से अपनाता है और सीखता है, मातृभाषा कहलाती है। यानी वह भाषा जो व्यक्ति के जन्म से ही परिवार के सदस्यों द्वारा बोली जाती है और जिसे बच्चा सीखता है, मातृभाषा कहलाती है। उदाहरण के लिए- हिंदी, पंजाबी, मराठी आदि।
प्रादेशिक भाषा: जब कोई भाषा किसी क्षेत्र में बोली जाती है, तो उसे प्रादेशिक भाषा कहते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय भाषा: जब कोई भाषा दुनिया के दो या दो से अधिक देशों द्वारा बोली जाती है, तो उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा कहते हैं। उदाहरण के लिए अंग्रेजी आदि।
राजभाषा: वह भाषा जो देश के कार्यालयों और सरकारी कामकाज में इस्तेमाल की जाती है, राजभाषा कहलाती है। उदाहरण के लिए- हिंदी और अंग्रेजी भारत की राजभाषा भाषाएँ हैं।
मानक भाषा: भाषा का वह रूप जिसे भाषाविदों और शिक्षाविदों द्वारा भाषा में एकरूपता लाने के लिए मान्यता दी जाती है, मानक भाषा कहलाती है। उदाहरण के लिए-
गयी – गई (मानक रूप)
अन्त – अंत (मानक रूप)
भाषा की प्रकृति
किसी भाषा का गुण ही उसकी प्रकृति कहलाती है। हर भाषा की अपनी प्रकृति, आंतरिक गुण और दोष होते हैं। मनुष्य अपने पूर्वजों से भाषा सीखता है, और उसका विकास करता है।
यह पारंपरिक और अर्जित दोनों होती है। मनुष्य कथन के माध्यम से, यानी बोलकर और लिखकर भाषा का प्रयोग करता है। देश और काल के अनुसार भाषा कई रूपों में विभाजित होती है। यही कारण है कि दुनिया में कई भाषाएँ प्रचलित हैं। व्याकरण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाषा पर निर्भर करता है।
भारत की प्रमुख भाषाएँ
भारतीय संविधान में 22 भारतीय भाषाओ को मान्यता प्रदान की गई है| ये भाषाएँ है- संस्कृत, हिंदी, सिंधी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी, कोंकड़ी, कश्मीरी, उर्दू, उड़िया, असमिया, कन्नड़, बांग्ला, नेपाली, बोडो, डोगरी, मैथली, संथाली और मणिपुरी|
बोली तथा उपभाषा
- बोली– सिमित क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा के रूप को बोली कहा जाता है|
- उपभाषा– किसी भी भाषा के ऐसे विशेष रूप, जिसे उस भाषा के बोलने वाले लोगो में एक भिन्न समुदाय प्रयोग करता हो, उसे उपभाषा कहा जाता है|
उपभाषा | बोली |
---|---|
पूर्वी हिंदी | अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी |
राजस्थानी हिंदी | जयपुरी, मारवाड़ी, मेवाती, मालवी |
पहाड़ी हिंदी | गढ़वाली, कुमाउँनी, हिमाचली |
पश्चिमी हिंदी | खड़ीबोली, हरियाणवी, कन्नौज, ब्रज |
बिहारी हिंदी | भोजपुरी, मैथली, मगही |
भाषा और लिपि
भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर और पढ़कर अपनी भावनाओं और विचारों का आदान-प्रदान करता है। लिपि शब्द का अर्थ ‘लीपना’ या ‘पोतना’ है| अपने विचारों को लिखना लिपि कहलाता है। अर्थात् उच्चारित ध्वनियों को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए निर्धारित चिह्नों या अक्षरों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।
सभ्यता के विकास के साथ-साथ अपने विचारों और भावनाओं को स्थायित्व प्रदान करने तथा दूर-दूर रहने वाले लोगों से संदेश और समाचारों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा को लिखित रूप देने की आवश्यकता महसूस की गई। इसके परिणामस्वरूप लिपि का आविष्कार हुआ। हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि ‘देवनागरी’ है|
अंग्रेजी भाषा की लिपि ‘रोमन’, पंजाबी भाषा की लिपि ‘गुरुमुखी’ और उर्दू भाषा की लिपि ‘फ़ारसी’ है| निचे विश्व की कुछ भाषाओं और उनकी लिपियों के नाम दिए जा रहे है-
भाषा | लिपियाँ |
---|---|
हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, बोडो | देवनागरी |
अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, इटेलियन, पोलिश, मिजो | रोमन |
पंजाबी | गुरुमुखी |
उर्दू, अरबी, फ़ारसी | फ़ारसी |
रुसी, बुल्गेरियन, चेक, रोमानियन | रुसी |
असमिया | असमिया |
उड़िया | उड़िया |
बँगला | बँगला |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
वह माध्यम जिसके द्वारा हम अपनी भावनाओं को लिखित या मौखिक रूप में दूसरों को समझा सकते हैं तथा दूसरों की भावनाओं को समझ सकते हैं, भाषा कहलाती है।
संविधान के अनुसार अभी तक किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिला है|
भाषा का उपयोग विचारो और भावनाओ का आदान-प्रदान करने के लिए किया जाता है|
भाषा के कारण कोई भी व्यक्ति अपने भावनाओ अथवा विचारो को दूसरे व्यक्ति को व्यक्त कर सकता है|
भाषा की परिवर्तनशीलता के कई कारण है| जैसे- जलवायु परिवर्तन, व्यक्ति का रहन-सहन, सांस्कृतिक प्रभाव, ऐतिहासिक प्रभाव इत्यादि|
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