जिस मूल रूप से क्रिया को बनाया जाता है, उसे धातु (dhatu) कहते है| यह क्रिया का ही एक रूप होता है| अर्थात जिन मूल अक्षरों से क्रियाएँ बनती है, उन्हें ‘धातु’ कहते है| जैसे- पढ़, जा, लिख इत्यादि| धातु पांच प्रकार के होते है- मूल धातु, यौगिक धातु, नाम धातु, मिश्र धातु और अनुकरणात्मक धातु|
धातु के उदाहरण
इसके कई उदाहरण है_
पढ़ना में धातु ‘पढ़‘ है, क्युकी इसमें ‘ना’ प्रत्यय है|
खाना में ‘खा‘ धातु है, क्युकी इसमें ‘ना’ प्रत्यय है|
ठीक इसी तरह जा, लिख इत्यादि धातु है|
धातु के भेद
धातु (dhatu) के 5 भेद होते है-
मूल धातु
यौगिक धातु
नाम धातु
मिश्र धातु
अनुकरणात्मक धातु
मूल धातु
मूल धातु स्वतंत्र होती है| यह किसी दूसरे शब्द पर निर्भर नहीं होती| मूल धातु पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती है| उदाहरण के लिए- देख, खा, पी इत्यादि|
यौगिक धातु
यौगिक धातु प्रत्यय से जोड़कर बनाया जाता है। उदाहरण के लिए- ‘खाना’ से खिला, ‘पढ़ना’ से पढ़ा इत्यादि| इस प्रकार, धातुएँ अनंत हैं। कुछ एकाक्षरी, दो-अक्षरी, तीन-अक्षरी और चार-अक्षरी वाली धातुएँ होती हैं।
नाम धातु
संज्ञा या विशेषण से बनने वाली धातु को नामधातु कहते हैं। उदाहरण के लिए- हाथ (संज्ञा) – हथियाना, गरम (विशेषण) – गरमाना इत्यादि|
मिश्र धातु
जिन संज्ञा, विशेषण और क्रिया विशेषण शब्दों के बाद ‘करना’ या ‘होना’ जैसे क्रिया पदों के प्रयोग से जो नई क्रिया धातुएँ बनती है, उसे मिश्र धातु कहते है| उदाहरण के लिए-
देना- पैसा देना, उधार देना|
जाना- चले जाना, सो जाना|
आना- किसी की याद आना, नजर आना|
अनुकरणात्मक धातु
वे धातुएं जो किसी ध्वनि की नकल करके बनाई जाती हैं, उसे अनुकरणात्मक धातु कहते है| उदाहरण के लिए- पटकना, खटकना इत्यादि|
परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
क्रिया का मूल रूप क्या है?
क्रिया का मूल रूप धातु है|
यौगिक धातु की रचना कैसे होती है?
यौगिक धातु की रचना तीन प्रकार से होती है- 1. धातु में प्रत्यय लगाने से अकर्मक से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुएँ बनती है| 2. कई धातुओं को संयुक्त करने से संयुक्त धातु बनती है| 3. संज्ञा या विशेषण से नामधातु बनती है|
वह शब्द जो किसी कार्य के करने या घटित होने का बोध कराता है, उसे क्रिया (kriya) कहते हैं। जैसे- जाना, खाना, लिखना, देखना इत्यादि| प्रत्येक वाक्य क्रिया से ही पूरा होता है| यह किसी कार्य को करने या होने को दर्शाती है| क्रिया को करने वाला ‘कर्ता‘ कहलाता है| क्रिया के कई भेद होते है-
प्रयोग के आधार पर– संयुक्त क्रिया, नामधातु क्रिया, प्रेणार्थक क्रिया और पूर्वकालिक क्रिया|
कर्म की दृष्टि से क्रिया के भेद– सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया|
क्रिया किसे कहते है?
जो शब्द किसी कार्य के होने या करने का संकेत देते हैं, उन्हें क्रिया कहते हैं। जैसे- रोहन लिखता है, सीता गाती है| वाक्य में क्रियाओं का महत्व इतना अधिक है कि यदि कर्ता या अन्य संयोजक का प्रयोग न भी किया जाए तो भी वाक्य का अर्थ क्रिया से ही स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए- भोजन लाना, जाना आदि।
हिंदी भाषा में क्रिया वाक्य के मध्य या अंत में कहीं भी हो सकती है। क्रिया विकारी शब्द है, इस पर लिंग, वचन, कारक, काल, पुरुष इत्यादि का प्रभाव पड़ता है|
क्रिया के भेद
क्रिया (kriya) के कई भेद है| जैसे- संयुक्त क्रिया, नामधातु क्रिया, प्रेणार्थक क्रिया, पूर्वकालिक क्रिया, सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया| क्रिया का भेद इस बात पर निर्भर करता है, कि इसे प्रयोग के आधार पर विभाजित किया जा रहा है, या फिर कर्म के दृष्टि के आधार पर| आगे आप इसका विस्तृत जानकारी जानेंगे| जहाँ पर इसका पूरा जानकारी दिया गया है|
क्रिया के उदाहरण
क्रिया के निम्न उदाहरण है-
किट्टू बुद्धिमान बालक है|
शालिनी जा रही है|
घोडा दौड़ता है|
अभिषेक किताब पढ़ रहा है|
बाहर बर्फ़बारी हो रही है|
अविनाश कॉलेज जा रहा है|
स्वेता खाना खा रही है|
बच्चा रो रहा है|
श्याम पानी पी रहा है।
अभिजीत खेल रहा है|
क्रिया के प्रकार
क्रिया (kriya) के प्रकार कई बातों पर निर्भर करता है| जैसे- प्रयोग के आधार पर और कर्म के दृष्टि के आधार पर| निचे इसका जानकारी दिया गया है-
प्रयोग के आधार पर क्रिया के प्रकार या भेद
प्रयोग या रचना के आधार पर क्रिया (kriya) के चार भेद होते है-
संयुक्त क्रिया
नामधातु क्रिया
प्रेणार्थक क्रिया
पूर्वकालिक क्रिया
संयुक्त क्रिया
जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। अर्थात जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर एक पूर्ण क्रिया का बोध कराती हैं, तो उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं। इसमें वाक्यों में एक से अधिक क्रियाएँ होते हैं। यहाँ ये सभी क्रियाएँ मिलकर एक ही कार्य को पूरा कर रही हैं। इसलिए ये संयुक्त क्रियाएँ हैं। उदाहरण के लिए- रोशन घर से लौट आया, तौहीद रोने लगा।
संयुक्त क्रिया के प्रकार
संयुक्त क्रिया के मुख्य 11 भाग है-
आरम्भबोधक
समाप्तिबोधक
अवकाशबोधक
अनुमतिबोधक
नित्यताबोधक
आवश्यकताबोधक
निश्चयबोधक
इच्छाबोधक
अभ्यासबोधक
शक्तिबोधक
पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
नामधातु क्रिया
क्रिया को छोड़कर दूसरे शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण इत्यादि|) से जो धातु बनते है, उसे नामधातु क्रिया कहते है| उदाहरण के लिए-लुटेरों ने जमीन हथिया ली| हमें गरीबो को अपनाना चाहिए|
प्रेणार्थक क्रिया
जब कर्ता किसी कार्य को स्वयं न करके किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा दे, तो उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते है| उदाहरण के लिए- लिखना से लिखवाना, करना से करवाना|
प्रेणार्थक क्रिया के प्रकार
प्रेणार्थक क्रिया के 2 प्रकार होते है-
प्रथम प्रेणार्थक क्रिया
द्रितीय प्रेणार्थक क्रिया
पूर्वकालिक क्रिया
जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है, तब पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाता है| उदाहरण के लिए-वह खाना खा कर सो गया, श्याम ने घर पहुंचकर फ़ोन किया|
कर्म के दृष्टि के आधार पर क्रिया के प्रकार या भेद
कर्म के दृष्टि के आधार पर क्रिया के दो भेद होते है- सकर्मक और अकर्मक क्रिया|
सकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया
जब वाक्य में क्रिया के साथ- साथ कर्म भी हो, तो उसे सकर्मक क्रिया कहते है| अर्थात जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े उसे सकर्मक क्रिया कहते है| उदाहरण के लिए- राधा गाना गाती है|, अध्यापक पुस्तक पढ़ा रहे है|
सकर्मक क्रिया के प्रकार
सकर्मक क्रिया 2 प्रकार के होते है-
एककर्मक क्रिया
द्रिकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया
वाक्य में जब क्रिया के साथ कर्म नहीं होता है, तो उस क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते है| अर्थात जिस वाक्य में क्रिया के साथ कर्म नहीं होता है, वह अकर्मक क्रिया कहलाता है| उदाहरण के लिए- राम पढता है|, गीता जाती है|
FAQs
क्रिया शब्द का अर्थ क्या है?
क्रिया (kriya) शब्द का अर्थ ‘करना’ होता है
प्रेणार्थक क्रिया के कितने भेद होते है?
प्रेणार्थक क्रिया के दो भेद है- प्रथम प्रेणार्थक क्रिया और द्रितीय प्रेणार्थक क्रिया|
लिपि शब्द का अर्थ ‘लीपना‘ या ‘पोतना‘ होता है| अतः विचारो का लिखना ही लिपि कहा जाता है| दूसरे शब्दों में- भाषा की मौखिक ध्वनिओ को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए निश्चित किये गए चिन्हो या वर्णो की व्यवस्था को लिपि(lipi) कहते है| हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि देवनागरी है| अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन, पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी और उर्दू भाषा की फ़ारसी है|
लिपि के उदाहरण
निचे भाषा एवं उसकी लिपियों के कुछ उदाहरण दिए जा रहे है-
लिपि
भाषा
उदाहरण
देवनागरी
हिंदी
रौशनी घर जा रही है|
देवनागरी
संस्कृत
रोश्नी गृहं गच्छति।
देवनागरी
मराठी
रोशनी घरी जात आहे.
देवनागरी
नेपाली
रोशनी घर जान्छिन्।
रोमन
अंग्रेजी
Roshni is going home.
रोमन
फ्रेंच
Roshni rentre chez lui.
रोमन
जर्मन
Roshni geht nach Hause.
रोमन
स्पेनिश
Roshni se va a casa.
रोमन
इटेलियन
Roshni sta andando a casa.
रोमन
पोलिश
Roshni wraca do domu.
रोमन
मिजो
Roshni chu a haw dawn ta.
गुरुमुखी
पंजाबी
ਰੋਸ਼ਨੀ ਘਰ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ।
फ़ारसी
उर्दू
روشنی گھر جا رہی ہے۔
रुसी
रुसी
Рошни собирается домой.
रुसी
बुल्गेरियन
Рошни се прибира вкъщи.
रुसी
रोमानियन
Roshni se duce acasă.
उड़िया
उड़िया
ରୋଶନି ଘରକୁ ଯାଉଛନ୍ତି।
बँगला
बँगला
রোশনি বাড়ি যাচ্ছে।
लिपि के उदाहरण
लिपि का इतिहास
भाषा के माध्यम से मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर और पढ़कर अपने भावों और विचारों का आदान-प्रदान करता है। और लिपि (lipi) का अर्थ है, उच्चारित ध्वनियों को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए निर्धारित चिह्नों या अक्षरों की प्रणाली।
सभ्यता के विकास के साथ-साथ अपने विचारों और भावनाओं को स्थायित्व प्रदान करने तथा दूर-दूर रहने वाले लोगों से संदेश और समाचारों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा को लिखित रूप देने की आवश्यकता महसूस की गई। परिणामस्वरूप लिपि (lipi) का आविष्कार हुआ। हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि ‘देवनागरी‘ है।
भाषा एवं लिपिया
विश्व की कुछ भाषाओं के नाम और उनकी लिपियाँ नीचे दी गई हैं-
भाषा
लिपियाँ
हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, बोडो
देवनागरी
अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, इटेलियन, पोलिश, मिजो
रोमन
पंजाबी
गुरुमुखी
उर्दू, अरबी, फ़ारसी
फ़ारसी
रुसी, बुल्गेरियन, चेक, रोमानियन
रुसी
असमिया
असमिया
उड़िया
उड़िया
बँगला
बँगला
भाषा और लिपि
लिपि का विकास
मौखिक भाषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भाषा का लिखित रूप में विकास हुआ| लिपि उच्चरित ध्वनिओं को लिखकर व्यक्त करने का एक ढंग है| सभ्यता के विकास के साथ साथ अपने भावो और विचारो को स्थायित्व प्रदान करने के लिए, दूर स्थित लोगो से संपर्क बनाये रखने के लिए तथा संदेशो और समाचारो के आदान- प्रदान के लिए लिपि का विकास हुआ|
अनेक लिपिया
किसी भी भाषा को एक से अधिक लिपियों में लिखा जा सकता है, तो दूसरी ओर कई भाषाओ की एक ही लिपि (lipi) हो सकती है, अर्थात एक से अधिक भाषाओ को किसी एक लिपि में लिखा जा सकता है| उदहारण के लिए हिंदी भाषा को हम देवनागरी तथा रोमन दोनों लिपियों में इस प्रकार लिख सकते है-
देवनागरी लिपि – किट्टू स्कूल गया है|
रोमन लिपि – Kittu school gaya hai.
इसके विपरीत हिंदी, मराठी, नेपाली, बोडो तथा संस्कृत सभी भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती है| हिंदी जिस भाषा में लिखी जाती है, उसका नाम ‘देवनागरी लिपि’ है| देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है| ब्राह्मी बहुत ही प्राचीन लिपि है, जिससे हिंदी की देवनागरी सहित गुजराती, असमिया, बँगला इत्यादि भाषाओ की लिपियों का भी विकास हुआ है|
देवनागरी लिपि बायीं से दायी ओर लिखा जाता है| यह एक मात्र ऐसी लिपि है, जिसमे स्वर तथा व्यंजन ध्वनिओ को मिलाकर लिखे जाने की व्यवस्था है| यही कारण है, कि देवनागरी लिपि अन्य लिपियों की तुलना में अधिक वैज्ञानिक लिपि है| अधिकांश भारतीय भाषाओ की लिपियाँ बायीं से दायी ओर लिखी जाती है, लेकिन केवल उर्दू जो फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है| यह दायी से बायीं ओर लिखा जाता है|
भाषा (Bhasha) वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावो या विचारो का आदान- प्रदान करता है| भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है, जिसका अर्थ ‘बोलना’ या ‘कहना’ है| डॉ श्यामसुंदर दास के अनुसार- “मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओ के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्ति ध्वनि- संकेतो का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है|”
किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने भावनाओ को दर्शाने के लिए भाषा का महत्व काफी होता है| अपने विचारो को प्रकट करने के लिए भाषा के किसी भी रूप अर्थात मौखिक, लिखित या सांकेतिक भाषा का पालन करना अनिवार्य है| बिना इन किसी भी रूप के पालन किये बिना विचारो का आदान-प्रदान नहीं हो सकता है| भाषा द्वारा मनुष्य के भावो, विचारो और भावनाओ को व्यक्त किया जाता है|
भाषा के प्रकार | भाषा के भेद
भाषा (Bhasha) के 3 भेद होते है-
मौखिक भाषा
लिखित भाषा
सांकेतिक भाषा
मौखिक भाषा
भाषा का वह रूप जिसमे वक्ता बोलकर अपनी भावनाये प्रकट करता है, और श्रोता सुनकर वक्ता की बात को समझता है, उसे मौखिक भाषा कहते है| दूसरे शब्दों में- जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है| यह भाषा का प्राचीनतम रूप है| मनुष्य ने पहले बोलना सीखा| इस रूप का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता है|
मौखिक भाषा की विशेषता
यह भाषा का मूल रूप है|
इस भाषा का प्रयोग जब व्यक्ति आमने-सामने हो तब भी कर सकते है| और जब व्यक्ति बहुत दूर हो तब भी बिभिन्न उपकरणों के माध्यम से कर सकते है|
यह भाषा का अस्थाई रूप है|
इस रूप की आधारभूत इकाई ध्वनि है|
विभिन्न ध्वनिओ के संयोग से शब्द बनते है, जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता है|
लिखित भाषा
भाषा का वह रूप जिसमे एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है, तथा दूसरा पढ़कर उसे समझता है, उसे लिखित भाषा कहते है| दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हो की सहायता से हम अपने मन के विचारो को लिखकर देते है, वह लिखित भाषा कहलाता है| लिखित भाषा के लिए लिपि का होना आवश्यक है| लिखित भाषा की इकाई वर्ण है| उच्चारित भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद में हुआ है| मौखिक भाषा को स्थायित्व प्रदान करने के लिए लिखित चिन्हो का विकास हुआ|
लिखित भाषा की विशेषता
इस भाषा में हम अपने विचारो को अनंत काल के लिए सुरक्षित रख सकते है|
यह उच्चरित ध्वनिओ को अभिव्यक्त करते है|
इसमें वक्ता और श्रोता का आमने-सामने रहना आवश्यक नहीं है|
सांकेतिक भाषा
भाषा का वह रूप जिसमे व्यक्ति अपने विचारो या भावो को संकेतो द्वारा एक दूसरे को प्रकट करते है, उसे सांकेतिक भाषा कहते है| इस भाषा का अधिकतर उपयोग बच्चे और गूंगे व्यक्ति द्वारा किया जाता है| इस भाषा का प्रयोग यातायात में भी किया जाता है| जैसे- रोड या रेलवे पर सिग्नल (signals), हाथो द्वारा सिपाही का सिग्नल दिया जाना| इसी तरह ship या airoplane को सावधानीपूर्वक चलन के लिए दिया जाने वाला सिग्नल इत्यादि|
सांकेतिक भाषा की विशेषता
जो व्यक्ति बोल या लिख नहीं सकते वो इस भाषा का प्रयोग करते है, जिससे वे अपने भावो को आसानी से प्रकट कर सकते है|
इस भाषा का प्रयोग एक आम इंसान अपने जीवन में किसी न किसी कारण से जरूर करता है|
जब व्यक्ति किसी कारणवश अपने विचारो को चाह कर भी बोलकर या लिखकर प्रकट नहीं कर पाते तो, वे सांकेतिक भाषा द्वारा प्रकट करते है|
हिंदी भाषा का विकास
हिंदी भाषा पुरे भारत में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा है| ज्यादातर राज्यों में यह भाषा बोली जाती है, लेकिन जलवायु में भिन्नता और भिन्न-भिन्न रहन-सहन के कारण इसके बोलचाल में थोड़ा-बहुत अंतर आ जाती है| उदाहरण-
राजस्थानी हिंदी का विकास ‘अपभ्रंश’ से हुआ है|
पश्चिमी हिंदी का विकास ‘शौरसेनि’ से हुआ है|
पूर्वी हिंदी का विकास ‘अर्धमागधी’ से हुआ है|
बिहारी हिंदी का विकास ‘मागधी’ से हुआ है|
पहाड़ी हिंदी का विकास ‘खस’ से हुआ है|
भाषा का उद्देश्य
भाषा का उद्देश्य है, किसी न किसी तरह दो या दो से अधिक व्यक्तिओ के बिच अपने विचारो और भावनाओ को आदान-प्रदान करना| व्यक्ति अपनी भावनाये 3 तरह से व्यक्त कर सकता है- बोलकर, लिखकर और संकेतो द्वारा| प्राचीनकाल में कोई भी भाषा (Bhasha) नहीं थी| धीरे-धीरे उनलोगो ने अपने विचारो को दर्शाने के लिए बोलने का प्रयास किया|
इस प्रकार मौखिक भाषा का जन्म हुआ| इसके बाद उन्हें अपने विचारो को दूर सन्देश पहुंचाने के लिए लिखित भाषा का जन्म हुआ| सांकेतिक भाषा के लिए कोई ठोस मत नहीं है, कि इसका जन्म सबसे पहले हुआ या सबसे बाद में|
भाषा के विविध रूप
हर देश में भाषा के तीन रूप होते हैं-
बोलियाँ: स्थानीय बोलियाँ जो आमतौर पर अपने समूह या घरों में बोली जाती हैं, बोलियाँ कहलाती हैं। ये बोलियाँ एक निश्चित सीमित क्षेत्र में ही बोली जाती हैं।
परिष्कृत भाषा: जब कोई बोली व्याकरण की दृष्टि से परिष्कृत हो जाती है, तो उसे परिष्कृत भाषा कहते हैं। पहले खड़ीबोली बोली जाती थी, आज वह परिष्कृत भाषा बन गई है। जब कोई भाषा व्यापक शक्ति प्राप्त कर लेती है, तो बाद में राजनीतिक और सामाजिक शक्ति के आधार पर उसे राजभाषा या राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल जाता है।
राष्ट्रीय भाषा: जब कोई भाषा किसी राष्ट्र के अधिकांश क्षेत्रों में बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, तो उसे राष्ट्रीय भाषा कहते हैं। इस भाषा का प्रयोग देश के अधिकांश निवासियों द्वारा किया जाता है।
भाषा के अन्य रूप
मातृभाषा: वह भाषा जिसे बच्चा अपने परिवार से अपनाता है और सीखता है, मातृभाषा कहलाती है। यानी वह भाषा जो व्यक्ति के जन्म से ही परिवार के सदस्यों द्वारा बोली जाती है और जिसे बच्चा सीखता है, मातृभाषा कहलाती है। उदाहरण के लिए- हिंदी, पंजाबी, मराठी आदि।
प्रादेशिक भाषा: जब कोई भाषा किसी क्षेत्र में बोली जाती है, तो उसे प्रादेशिक भाषा कहते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय भाषा: जब कोई भाषा दुनिया के दो या दो से अधिक देशों द्वारा बोली जाती है, तो उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा कहते हैं। उदाहरण के लिए अंग्रेजी आदि।
राजभाषा: वह भाषा जो देश के कार्यालयों और सरकारी कामकाज में इस्तेमाल की जाती है, राजभाषा कहलाती है। उदाहरण के लिए- हिंदी और अंग्रेजी भारत की राजभाषा भाषाएँ हैं।
मानक भाषा: भाषा का वह रूप जिसे भाषाविदों और शिक्षाविदों द्वारा भाषा में एकरूपता लाने के लिए मान्यता दी जाती है, मानक भाषा कहलाती है। उदाहरण के लिए- गयी – गई (मानक रूप) अन्त – अंत (मानक रूप)
किसी भाषा का गुण ही उसकी प्रकृति कहलाती है। हर भाषा की अपनी प्रकृति, आंतरिक गुण और दोष होते हैं। मनुष्य अपने पूर्वजों से भाषा सीखता है, और उसका विकास करता है।
यह पारंपरिक और अर्जित दोनों होती है। मनुष्य कथन के माध्यम से, यानी बोलकर और लिखकर भाषा का प्रयोग करता है। देश और काल के अनुसार भाषा कई रूपों में विभाजित होती है। यही कारण है कि दुनिया में कई भाषाएँ प्रचलित हैं। व्याकरण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाषा पर निर्भर करता है।
भारत की प्रमुख भाषाएँ
भारतीय संविधान में 22 भारतीय भाषाओ को मान्यता प्रदान की गई है| ये भाषाएँ है- संस्कृत, हिंदी, सिंधी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, मराठी, पंजाबी, कोंकड़ी, कश्मीरी, उर्दू, उड़िया, असमिया, कन्नड़, बांग्ला, नेपाली, बोडो, डोगरी, मैथली, संथाली और मणिपुरी|
बोली तथा उपभाषा
बोली– सिमित क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा के रूप को बोली कहा जाता है|
उपभाषा– किसी भी भाषा के ऐसे विशेष रूप, जिसे उस भाषा के बोलने वाले लोगो में एक भिन्न समुदाय प्रयोग करता हो, उसे उपभाषा कहा जाता है|
उपभाषा
बोली
पूर्वी हिंदी
अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
राजस्थानी हिंदी
जयपुरी, मारवाड़ी, मेवाती, मालवी
पहाड़ी हिंदी
गढ़वाली, कुमाउँनी, हिमाचली
पश्चिमी हिंदी
खड़ीबोली, हरियाणवी, कन्नौज, ब्रज
बिहारी हिंदी
भोजपुरी, मैथली, मगही
बोली तथा उपभाषा
भाषा और लिपि
भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर और पढ़कर अपनी भावनाओं और विचारों का आदान-प्रदान करता है। लिपि शब्द का अर्थ ‘लीपना’ या ‘पोतना’ है| अपने विचारों को लिखना लिपि कहलाता है। अर्थात् उच्चारित ध्वनियों को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए निर्धारित चिह्नों या अक्षरों की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।
सभ्यता के विकास के साथ-साथ अपने विचारों और भावनाओं को स्थायित्व प्रदान करने तथा दूर-दूर रहने वाले लोगों से संदेश और समाचारों का आदान-प्रदान करने के लिए भाषा को लिखित रूप देने की आवश्यकता महसूस की गई। इसके परिणामस्वरूप लिपि का आविष्कार हुआ। हिंदी और संस्कृत भाषा की लिपि ‘देवनागरी’ है|
अंग्रेजी भाषा की लिपि ‘रोमन’, पंजाबी भाषा की लिपि ‘गुरुमुखी’ और उर्दू भाषा की लिपि ‘फ़ारसी’ है| निचे विश्व की कुछ भाषाओं और उनकी लिपियों के नाम दिए जा रहे है-
भाषा
लिपियाँ
हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, बोडो
देवनागरी
अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, इटेलियन, पोलिश, मिजो
रोमन
पंजाबी
गुरुमुखी
उर्दू, अरबी, फ़ारसी
फ़ारसी
रुसी, बुल्गेरियन, चेक, रोमानियन
रुसी
असमिया
असमिया
उड़िया
उड़िया
बँगला
बँगला
भाषा और लिपि
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
भाषा क्या है?
वह माध्यम जिसके द्वारा हम अपनी भावनाओं को लिखित या मौखिक रूप में दूसरों को समझा सकते हैं तथा दूसरों की भावनाओं को समझ सकते हैं, भाषा कहलाती है।
भारत की राष्ट्रीय भाषा क्या है?
संविधान के अनुसार अभी तक किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिला है|
भाषा का क्या उपयोग है?
भाषा का उपयोग विचारो और भावनाओ का आदान-प्रदान करने के लिए किया जाता है|
भाषा की विशेषताएं क्या होती है?
भाषा के कारण कोई भी व्यक्ति अपने भावनाओ अथवा विचारो को दूसरे व्यक्ति को व्यक्त कर सकता है|
भाषा परिवर्तन के कारण का क्या कारण है?
भाषा की परिवर्तनशीलता के कई कारण है| जैसे- जलवायु परिवर्तन, व्यक्ति का रहन-सहन, सांस्कृतिक प्रभाव, ऐतिहासिक प्रभाव इत्यादि|
क्रिया के उस रूपांतर को काल (Kaal) कहते है, जिससे उसके कार्य- व्यापार का समय और उसकी पूर्ण अथवा अपूर्ण अवस्था का बोध हो| काल के उदाहरण–
बच्चे स्कूल जा रहे है|
बच्चे स्कूल जा रहे थे|
बच्चे स्कूल जायेंगे|
इन तीनो वाक्यों में अगर आप ध्यान दे तो, पहले वाक्य में क्रिया वर्तमान में हो रहा है| दूसरे वाक्य में क्रिया पहले ही हो चूका है| तथा तीसरे वाक्य में वह कार्य भविष्य में होगा| अतः इन वाक्यो की क्रियाओ से कार्य के होने का समय प्रकट हो रहा है|
काल (Kaal) के भेद
काल (Kaal) तीन प्रकार के होते है-
वर्तमान काल
भूतकाल
भविष्य काल
वर्तमान काल
क्रिया के जिस रूप से वर्तमान में चल रहे समय का बोध होता है, उसे वर्तमान काल (vartmaan kaal) कहते है| इस काल की पहचान के लिए वाक्य के अंत में ता, ती, ते, है, हैं इत्यादि आते हैं| उदाहरण-
राम पढाई कर रहा है|
माता बाजार जा रही है|
वह पुस्तक पढ़ रहा है|
वर्तमान काल के भेद
वर्तमान काल के पांच भेद होते है-
सामान्य वर्तमानकाल: वह क्रिया जो वर्तमान में सामान्य रूप से होता है, उसे सामान्य वर्तमानकाल कहते है| उदाहरण-
रोहन खिलौनों से खेलता है|
वह पुस्तक पढ़ती है|
अपूर्ण वर्तमानकाल: क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कोई कार्य वर्तमान काल में पूर्ण नहीं हुआ है, तथा वह कार्य चल रहा है, उसे अपूर्ण वर्तमानकाल कहते है| उदाहरण-
सीता विद्यालय जा रही है| इस वाक्य में कार्य पूर्ण रूप से नहीं हुआ है, क्योकि सीता विद्यालय अभी पहुंची नहीं है|
पूर्ण वर्तमानकाल: क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कोई कार्य वर्तमान काल में पूर्ण हो गया है, उसे पूर्ण वर्तमानकाल कहते है| उदाहरण-
राम ने पुस्तक पढ़ा है|
संदिग्ध वर्तमानकाल: जिस क्रिया के वर्तमान समय में पूर्ण होने में संदेह हो, उसे संदिग्ध वर्तमानकाल कहते हैं। उदाहरण-
वह खेलता होगा।
आज कॉलेज खुला होगा।
तत्कालिक वर्तमानकाल: क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो, कि कोई कार्य वर्तमानकाल में हो रहा है, उसे तात्कालिक वर्तमानकाल कहते हैं। उदाहरण-
वह जा रही है।
संभाव्य वर्तमानकाल: वर्तमानकाल के जिस रूप से काम के पूरा होने का संभावना बना रहता है, उसे सम्भाव्य वर्तमानकाल कहते है| उदाहरण-
वह आयी है।
वह चलता हो।
भूतकाल
क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का बोध होता है, उसे भूतकाल (bhut kaal) कहते है। इस काल को पहचानने के लिए वाक्य के अन्त में ‘था, थे, थी’ इत्यादि रहते हैं। उदाहरण-
वह जा चुका था|
उसने पुस्तक पढ़ ली थी।
रीता खा चुकी थी|
भूतकाल के भेद
भूतकाल के छह भेद होते है-
सामान्य भूतकाल: वह काल जिसमे भूतकाल की क्रिया के विशेष समय का ज्ञान न हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं।.उदाहरण-
राम आया।
गीता गयी।
आसन भूतकाल: क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो, कि क्रिया अभी कुछ समय पहले ही पूर्ण हुआ है, उसे आसन्न भूतकाल कहते हैं। उदाहरण-
सोहन ने सेव खाया है|
वह अभी सोकर उठा है|
पूर्ण भूतकाल: क्रिया के जिस रूप से यह पता चले, कि कार्य पहले ही पूर्ण हो चुका है, उसे पूर्ण भूतकाल कहते हैं। इस काल में क्रिया के साथ ‘था, थी, थे, चुका था, चुकी थी, चुके थे इत्यादि लगता है| उदाहरण-
उसने मोहन को मारा था।
अंग्रेजों ने भारत पर राज किया था।
अपूर्ण भूतकाल: जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि भूतकाल में कार्य सम्पन्न नहीं हुआ था, तथा वह कार्य अभी चल रहा था, उसे अपूर्ण भूत कहते हैं। उदाहरण-
महेश गीत गा रहा था।
सीता सो रही थी।
संदिग्ध भूतकाल: भूतकाल की जिस क्रिया से कार्य होने में अनिश्चितता या संदेह प्रकट हो, उसे संदिग्ध भूतकाल कहते है। इस काल में यह सन्देह बना रहता है, कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ या नही। उदाहरण-
ट्रैन छूट गई होगी।
दुकानें बंद हो चुकी होंगी।
हेतुहेतुमद् भूत: यदि भूतकाल में एक क्रिया के होने या न होने पर दूसरी क्रिया का होना या न होना निर्भर करता है, तो उसे हेतुहेतुमद् भूतकाल क्रिया कहते है। उदाहरण-
यदि तुमने परिश्रम किया होता, तो पास हो जाते।
भविष्य काल
भविष्य में होने वाली क्रिया को भविष्य काल (bhavishya kaal) की क्रिया कहते है। इस काल की पहचान के लिए वाक्य के अन्त में ‘गा, गी, गे’ इत्यादि आते है। उदाहरण-
शालिनी कल घर जाएगी।
किसान खेत में बीज बोयेगा।
श्याम कल कोलकाता जायेंगे|
भविष्य काल के भेद
भविष्य काल के तीन भेद होते है-
सामान्य भविष्यत काल: क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में सामान्य रूप से होने का पता चलता है, उसे सामान्य भविष्यत काल कहते हैं। काल से हमें यह जानकारी मिलता है, कि क्रिया सामान्यतः भविष्य में होगी। उदाहरण-
बच्चे क्रिकेट खेलेंगे।
बिट्टू घर जायेगा।
सम्भाव्य भविष्यत काल: क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में होने का संभावना का पता चलता है, उसे सम्भाव्य भविष्यत काल कहते हैं। उदाहरण-
हो सकता है, कि मैं कल देवघर जाऊँ।
शायद चोर पकड़ा जाए।
हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्यत काल: क्रिया के जिस रूप से एक कार्य का पूर्ण होना दूसरी आने वाले समय की क्रिया पर निर्भर हो, तो उसे हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्य काल (kaal) कहते है। उदाहरण-
वह आये तो मै जाऊ|
वह पढ़ेगा तो सफल होगा।
परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जो ज्यादातर एग्जाम में आते है, निचे दिए गए हैं|
काल (Kaal) कितने प्रकार के होते है? काल (Kaal) तीन प्रकार के होते है-
वर्तमान काल
भूतकाल
भविष्य काल
अपूर्ण वर्तमानकाल को परिभाषित कीजिये| क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कोई कार्य वर्तमान काल में पूर्ण नहीं हुआ है, तथा वह कार्य चल रहा है, उसे अपूर्ण वर्तमानकाल कहते है|
पूर्ण भूतकाल के दो उदाहरण दीजिये| पूर्ण भूतकाल के दो उदाहरण-
उसने मोहन को मारा था।
अंग्रेजों ने भारत पर राज किया था।
भविष्य काल क्या है| भविष्य में होने वाली क्रिया को भविष्य काल की क्रिया कहते है। इस काल की पहचान के लिए वाक्य के अन्त में ‘गा, गी, गे’ इत्यादि आते है।
FAQ
काल (Kaal) क्या हैं?
क्रिया के जिस रूप से कार्य को करने या कार्य के होने के समय का बोध हो, उसे काल (Kaal) कहते हैं|
भूतकाल के कितने प्रकार हैं?
भूतकाल छह प्रकार के होते हैं- सामान्य भूतकाल आसन भूतकाल पूर्ण भूतकाल अपूर्ण भूतकाल संदिग्ध भूतकाल हेतुहेतुमद् भूतकाल
दो या दो से अधिक शब्दों को संछिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया को ही समास (Samas) कहते हैं| समास का अर्थ संछिप्तीकरण होता हैं| समास (samas) रचना में दो पद होते हैं| पहले पद को ‘पूर्वपद’ कहा जाता हैं, और दूसरे को ‘उत्तरपद’ कहा जाता हैं| पूर्वपद और उत्तरपद के मिलने से जो नया शब्द बनता हैं, उसे समस्त पद कहते हैं| समास कितने प्रकार के होते हैं, तथा इसका विस्तृत जानकारी निचे दिया गया हैं| समास के उदाहरण–
रसोई के लिए घर = रसोईघर
राजा का पुत्र = राजपुत्र
नील और कमल = नीलकमल
समास के भेद, उदाहरण सहित
समास के प्रकार एवं समास (Samas) से सम्बंधित पूरी जानकारी निचे दी गई हैं-
अव्ययीभाव समास
तत्पुरुष समास
कर्मधारय समास
द्रिगु समास
द्रन्द्र समास
बहुब्रीहि समास
अव्ययीभाव समास
जिस समास (Samas) का पूर्वपद अव्यय प्रधान हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं| इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक में नहीं बदलता हैं| वो हमेशा एक जैसा रहता हैं| यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हो वहां पर अव्ययीभाव समास होता हैं|
पहचान– पहला पद अनु, प्रति, भर, यथा, आ, हर इत्यादि होता हैं| उदाहरण-
यथानियम = नियम के अनुसार
प्रतिवर्ष = हर वर्ष
घर-घर = प्रत्येक घर
रातों रात = रात ही रात में
आमरण = मृत्यु तक
यथाकाम = इच्छानुसार
तत्पुरुष समास
जिस समास (Samas) में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता हैं और दोनों पदों के बिच का कारक चिन्ह लुप्त हो जाता हैं, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं| तत्पुरुष समास में अंतिम पद प्रधान होता हैं| उदाहरण-
सिकंदराबाद = सिकंदर द्वारा आबाद
मदमत्त = माध से मत्त
रोगमुक्त = रोग से मुक्त
देवालय = देव का आलय
शरणागत = शरण में आगत
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं-
कर्म तत्पुरुष समास: इसमें सामासिक शब्द में कर्म कारक की विभक्ति का लोप होता हैं| उदाहरण-
कष्टभोगी = कष्ट को भोगनेवाला
देवगत = देव को गत
गगनचुम्बी = गगन को चूमने वाला
ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
जेबकतरा = जेब को कतरने वाला
करण तत्पुरुष समास: इसमें सामासिक शब्द के कारण कारक की विभक्ति का लोप होता हैं| उदाहरण-
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा कृत
मनचाहा = मन से चाहा
रसभरा = रस से भरा
भयाकुल = भय से आकुल
सूररचित = सूर द्वारा रचित
सम्प्रदान तत्पुरुष समास: इसमें सामासिक शब्द में सम्प्रदान कारक की विभक्ति का लोप होता हैं| उदाहरण-
सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
रसोईघर = रसोई के लिए घर
राहखर्च = राह के लिए खर्च
स्नानघर = स्नान के लिए घर
गौशाला = गौ के लिए शाला
अपादान तत्पुरुष समास: इसमें सामासिक शब्द में अपादान कारक की विभक्ति का लोप होता हैं| उदाहरण-
भवतारक = भव से तारक
दूरागत = दूर से आगत
धनहीन = धन से हीन
पापमुक्त = पाप से मुक्त
जलहीन = जल से हीन
सम्बन्ध तत्पुरुष समास: इसमें सामासिक शब्द में सम्बन्ध कारक की विभक्ति का लोप होता हैं| उदाहरण-
राजकुमारी = राजा की कुमारी
देशवासी = देश के वासी
राजदरबार = राजा का दरबार
गृह स्वामी = गृह का स्वामी
पराधीन = पर के अधीन
अधिकरण तत्पुरुष समास: इसमें सामासिक शब्द में अधिकरण कारक की विभक्ति का लोप होता हैं| उदाहरण-
दानवीर = दान में वीर
आपबीती = आप पर बीती
नरोत्तम = नारों में उत्तम
लोकप्रिय = लोक में प्रिय
कर्मधारय समास
जिस समास (Samas) में विशेषण और विशेष्य अथवा उपमान और उपमेय का योग होता हैं, उसे कर्मधारय समास कहते हैं| उदाहरण-
चन्द्रमुख = चंद्र जैसा मुख
महात्मा = महान हैं जो आत्मा
देहलता = देह रूपी लता
नवयुवक = नव हैं जो युवक
नीलगगन = नीला हैं जो गगन
कर्मधारय समास के भेद
कर्मधारय समास के 4 भेद होते हैं-
विशेषणपूर्वपद: इसमें पहला पद विशेषण होता हैं| उदाहरण-
नीलकमल = नील + कमल
भलमानस = भल + मानस
प्रियसखा = प्रिय + सखा
विशेष्यपूर्वपद: इसमें पहला पद विशेष्य होता हैं| उदाहरण-
कुमारश्रमणा = कुमारी + श्रमणा (सन्यास ग्रहण की हुई)
विशेषणोभयपद: इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं| उदाहरण-
शीतोष्ण = ठंडा + गरम
विशेष्योभयपद: इसमें दोनों पद विशेष्य होते हैं| उदाहरण- आमगाछ, वायस-दम्पति इत्यादि|
द्रिगु समास
यदि कर्मधारय समास में प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण हो तो उसे द्रिगु समास कहते हैं| इसमें समूह अथवा समाहार का बोध होता हैं| उदाहरण-
सप्तसिंधु = सात सिन्धुओ का समूह
त्रिलोक = तीनो लोको का समाहार
पंचतंत्र = पाँच तंत्रो का समूह
नवनिधि = नौ निधियों का समूह
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समूह
द्रिगु समास के भेद
द्रिगु समास के दो भेद होते हैं-
समाहारद्रिगु: इसका अर्थ ‘इक्कट्ठा होना’ या ‘समेटना’ होता हैं| उदाहरण-
त्रिलोक = तीनों लोको का समाहार
पसेरी = पांच सेरों का समाहार
उत्तरपदप्रधानद्रिगु: इसमें एक शब्द उत्तरपद होता हैं, तथा वह शब्द दूसरे शब्द को विशेषण करता हैं| उदाहरण-
दुसूती = दो सूतों के मेल का
पंचप्रमाण = पांच प्रमाण
द्रन्द्र समास
इस समास (Samas) में दोनों ही पद प्रधान होते हैं| इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता हैं| इसमें शब्दों का विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता हैं, उसे द्रन्द्र समास कहते हैं| उदाहरण-
माता-पिता = माता और पिता
अन्न-जल = अन्न और जल
लाभ-हानि = लाभ और हानि
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
भला-बुरा = भला और बुरा
द्रन्द्र समास के भेद
द्रन्द्र समास के तीन भेद होते हैं-
इतरेतर द्रन्द्र समास: वे द्रन्द्र जिसमे ‘और’ शब्द से पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हो, उसे इतरेतर द्रन्द्र समास कहते हैं| उदाहरण-
अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
गाय-बैल = गाय और बैल
बेटा-बेटी = बेटा और बेटी
समाहार द्रन्द्र समास: समाहार का अर्थ समूह होता हैं| इसमें दोनों पद का अर्थ मिलकर एक समूह बनाता हैं| उदाहरण-
हाथपाँव = हाथ और पाँव
दालरोटी = दाल और रोटी
विकल्प द्रन्द्र समास: इसमें दोनों पदों में से एक ही पद का प्रयोग किया जाता हैं| उदाहरण-
थोडा-बहुत = थोड़ा या बहुत
भला या बुरा
बहुव्रीहि समास
समास (Samas) में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो तो उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं| अर्थात बहुब्रीहि समास में दोनो पदों (पूर्वपद और उत्तरपद) में से कोई भी एक पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद की प्रधानता को दर्शाता हैं| उदहारण-
दीर्घबाहु = दीर्घ हैं बाहु जिसकी
महावीर = महान हैं जो वीर
गिरिधर = गिरि को धारण करने वाला
प्रधानमंत्री = मंत्रियो में जो प्रधान हैं
निशाचर = निशा में विचरण करने वाला
सामासिक शब्द किसे कहते हैं?
समास के नियमो से निर्मित शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं| इसे समस्तपद भी कहा जाता हैं| जैसे- राजपुत्र
समास विग्रह (Samas vigrah) क्या हैं?
सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को ही समास विग्रह (Samas vigrah) कहते हैं| दूसरे शब्दों में जब समस्त पद के सभी पद अलग- अलग किये जाते हैं, उसे समास विग्रह कहते हैं| जैसे- माता-पिता = माता और पित|
कुछ महत्वपूर्ण अंतर
कुछ महत्वपूर्ण अंतर जो अक्सर एग्जाम में पूछे जाते हैं, जैसे कि संधि समास में अंतर, कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अंतर, द्रिगु और बहुब्रीहि समास में अंतर इत्यादि| निचे सारे अंतर दिए गए हैं-
संधि (Sandhi) और समास (Samas) में अंतर
निचे संधि (Sandhi) और समास (Samas) में अंतर दिए गए हैं-
संधि
समास
संधि का शाब्दिक अर्थ मेल होता हैं|
समास (samas) का अर्थ संग्रह होता हैं|
इसमें दो वर्णो का मेल होता हैं|
इसमें दो पदों का योग होता हैं|
संधि प्रायः शुद्ध तत्सम शब्दों में होती हैं|
समास के लिए शब्द का तत्सम होना आवश्यक नहीं हैं|
संधि तोड़ने को विच्छेद कहते हैं|
समास (samas) तोड़ने को विग्रह कहते हैं|
संधि में जिन शब्दों को योग होता हैं, उनका मूल अर्थ नहीं बदलता हैं|
समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता हैं| और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता हैं|
संधि में वर्णो के योग से वारं परिवर्तन भी होता हैं|
समास (samas) में ऐसा नहीं होता हैं|
संधि और समास में अंतर
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर निचे दिए गए हैं-
कर्मधारय समास
बहुब्रीहि समास
जिस समास में विशेषण और विशेष्य अथवा उपमान और उपमेय का योग होता हैं, वह कर्मधारय समास कहलाता हैं|
समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता होता हैं, वह बहुब्रीहि समास कहलाता हैं|
इसमें विशेषण और विशेष्य अथवा उपमेय व उपमान का योग होता हैं|
इसमें दोनों पद मिलकर अपने पदों का सामान्य अर्थ न बताकर कोई अन्य अर्थ प्रकट करते हैं|
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
द्रिगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
द्रिगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर निचे दिए गए हैं-
द्रिगु समास
बहुब्रीहि समास
यदि कर्मधारय समास में प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण हो तो उसे द्रिगु समास कहते हैं|
जब दोनो पदों (पूर्वपद और उत्तरपद) में से कोई भी एक पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद की प्रधानता को दर्शाता हैं, तो उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं|
इसमें पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता हैं| तथा दूसरा पद विशेष्य होता हैं|
इसमें समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता हैं|
द्रिगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर
द्रिगु समास और कर्मधारय समास में अंतर
द्रिगु समास और कर्मधारय समास में अंतर निचे दिए गए हैं-
द्रिगु समास
कर्मधारय समास
इसमें पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता हैं, जो दूसरे पदों की गिनती बताता हैं|
इसमें एक पद का विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता हैं|
इसमें पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता हैं|
इसमें कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता हैं|
द्रिगु समास और कर्मधारय समास में अंतर
अक्सर परीक्षा में आने वाले कुछ महत्वूर्ण समास विग्रह और उनके नाम
निचे कुछ महत्वपूर्ण समास विग्रह और उनके नाम दिए गए है, जो अक्सर एग्जाम में आते हैं-
सामासिक पद
समास विग्रह
समास के नाम
लेखन-कार्य
लेखन का कार्य
तत्पुरुष समास
आत्मपक्ष
आत्मा का पक्ष
तत्पुरुष समास
कृष्णार्पण
कृष्ण के लिए अर्पित
तत्पुरुष समास
रातोंरात
रात ही रात में
अव्ययीभाव समास
स्वार्थ
स्व का अर्थ
तत्पुरुष समास
राजगृह
राजा का गृह
तत्पुरुष समास
आशातीत
आशा को लाँघकर गया हुआ
तत्पुरुष समास
टाट-पट्टी
टाट और पट्टी
द्रन्द्र समास
अकालपीड़ित
अकाल से पीड़ित
तत्पुरुष समास
पेड़-पौधों
पेड़ और पौधे
द्रन्द्र समास
पहाड़फोड़
पहाड़ को फोड़नेवाला
तत्पुरुष समास
अज्ञात
जो ज्ञात न हो
अव्ययीभाव समास
व्यर्थ
बिना अर्थ के
अव्ययीभाव समास
वीणापाणि
वीणा हैं पाणी में जिसके
बहुब्रीहि समास
नराधम
नरों में अधम
तत्पुरुष समास
अप्रिय
नहीं हैं प्रिय
अव्ययीभाव समास
शोकाकुल
शोक से आकुल
तत्पुरुष समास
नीरस
बिना रस के
अव्ययीभाव समास
शोभा-निकेतन
शोभा का निकेतन
तत्पुरुष समास
महाकाव्य
महान काव्य
कर्मधारय समास
निःसंदेह
बिना संदेह के
अव्ययीभाव समास
चहल-पहल
चहल और पहल
द्रन्द्र समास
भलाबुरा
भला और बुरा
द्रन्द्र समास
निर्जन
नहीं हैं जान जहाँ, वह स्थान
बहुब्रीहि समास
दशमुख
दश हैं मुख जिसके
बहुब्रीहि समास
जान-बूझकर
जान और बूझकर
द्रन्द्र समास
शराहत
शर से आहत
तत्पुरुष समास
लोकप्रेम
लोक का प्रेम
तत्पुरुष समास
वेशभूषा
वेष और भूषा
द्रन्द्र समास
अक्सर परीक्षा में आने वाले कुछ महत्वूर्ण समास विग्रह और उनके नाम
FAQs
समास विग्रह (Samas vigrah) क्या हैं?
जब समस्त पद के सभी पद अलग- अलग किये जाते हैं, उसे समास विग्रह (Samas vigrah) कहते हैं| जैसे- माता-पिता = माता और पिता
कर्मधारय समास के 10 उदाहरण दे?
कर्मधारय समास के 10 उदाहरण निचे दिए गए हैं- नवयुवक = नव हैं जो युवक कनकलता = कनक की-सी लता देहलता = देह रूपी लता अधमरा = आधा हैं जो मरा प्राणप्रिय = प्राणों के समान प्रिय चरणकमल = कमल के समान चरण लालमणि = लाल है जो मणि नीलकंठ = नीला है जो कंठ चन्द्रमुख = चंद्र जैसा मुख पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
तत्पुरुष समास के 10 उदाहरण दे?
निचे तत्पुरुष समास के उदाहरण दिए गए है- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति राहखर्च = राह के लिए खर्च तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत राजमहल = राजा का महल माखनचोर = माखन को चुराने वाला देशगत = देश को गया हुआ भयाकुल = भय से आकुल स्नानघर = स्नान के लिए घर दूरागत = दूर से आगत देवपूजा = देव की पूजा
समास के कितने भेद हैं?
समास के 6 भेद होते हैं- अव्ययीभाव समास तत्पुरुष समास कर्मधारय समास द्रिगु समास द्रन्द्र समास बहुब्रीहि समास
तत्पुरुष समास किसे कहते हैं?
जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता हैं और दोनों पदों के बिच का कारक चिन्ह लुप्त हो जाता हैं, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं| तत्पुरुष समास में अंतिम पद प्रधान होता हैं|
दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनके रूप और उच्चारण में जो परिवर्तन होता हैं, उसे संधि (Sandhi) कहते हैं| दूसरे शब्दों में संधि की परिभाषा (sandhi ki paribhasha) का अर्थ हैं, जब दो शब्द मिलते हैं, तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन करता हैं, वह संधि कहलाता हैं| संधि दो शब्दों से मिलकर बना हैं- सम+धि, जिसका अर्थ ‘मिलना’ होता हैं| इसमें दो अक्षरों के मेल से तीसरे शब्द की रचना होती हैं|
संधि के प्रकार
संधि (Sandhi) के तीन भेद हैं-
स्वर संधि
व्यंजन संधि
विसर्ग संधि
स्वर संधि किसे कहते हैं?
दो स्वरों के आपस में मिलने से जो रूप परिवर्तन होता हैं, उसे स्वर संधि कहते हैं| अर्थात संधि दो स्वरों से उत्पन्न विकार या रूप परिवर्तन हैं| जैसे- भाव + अर्थ = भावार्थ| ऊपर दिए गए शब्दों में ‘भाव’ शब्द का अंतिम स्वर ‘अ’ एवं ‘अर्थ’ शब्द का पहला स्वर ‘अ’ दोनों शब्दों के मिलने से ‘आ’ स्वर की उत्पत्ति हुई| जिससे “भावार्थ” शब्द का निर्माण हुआ| इसके अन्य उदाहरण निचे दिए गए हैं-
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
महा + ईश = महेश
मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र
सूर्य + उदय = सूर्योदय
कवि + ईश्वर = कवीश्वर
स्वर संधि के प्रकार
स्वर संधि पांच प्रकार के होते हैं-
दीर्घ स्वर संधि
गुण स्वर संधि
वृद्धि स्वर संधि
यण स्वर संधि
अयादि स्वर संधि
दीर्घ स्वर संधि
दो सुजातीय स्वर के आस – पास आने से जो स्वर बनता हैं, उसे दीर्घ संधि कहते हैं| इसे हस्व संधि भी कहा जाता हैं| जैसे- अ/आ + अ/आ = आ, इ/ई + इ/ई = ई, उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ ऋ + ऋ = ऋ इत्यादि | दीर्घ संधि के उदाहरण-
गिरि + ईश = गिरीश
भानु + उदय = भानूदय
शिव + आलय = शिवालय
कोण + अर्क = कोणार्क
देव + असूर = देवासूर
गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
पितृ + ऋण = पितृण
गुण स्वर संधि
जब अ, आ के साथ इ, ई हो तो ‘ए’ बनता हैं| जब अ, आ के साथ उ, ऊ हो तो ‘ओ’ बनता हैं| जब आ, आ के साथ ऋ हो तो ‘अर’ बनता हैं, उसे गुण संधि कहते हैं| जैसे- अ + इ = ए, अ + उ = ओ, आ + उ = ओ, अ + ई = ए इत्यादि| गुण संधि के उदाहरण-
नर + इंद्र = नरेंद्र
भारत + इंदु = भारतेन्दु
देव + ऋषि = देवर्षि
सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
वृद्धि स्वर संधि
जब अ, आ के साथ ए, ऐ हो तो, ‘ऐ’ बनता हैं| और जब अ, आ के साथ ओ, औ हो तो ‘औ’ बनता हैं| उसे वृद्धि स्वर संधि कहते हैं| जैसे- अ + ए = ऐ, आ + ए = ऐ, आ + औ = औ, आ + ओ = औ इत्यादि| वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण-
मत + एकता = मतैकता
एक + एक = एकैक
सदा + एव = सदैव
महा + ओज = महौज
यण स्वर संधि
यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद कोई अलग स्वर आये, तो इ – ई का ‘यू’, उ – ऊ का ‘व्’ और ऋ का ‘र’ बनता हैं| जैसे- इ + अ = य, इ + ऊ = यू , उ + आ = वा, उ + औ = वौ इत्यादि| यण स्वर संधि के उदाहरण
परी + आवरण = पर्यावरण
अनु + अय = अन्वय
सु + आगत = स्वागत
अभि + आगत = अभ्यागत
अयादि स्वर संधि
यदि ए, ऐ, ओ, और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो ए को ‘अय’, ऐ को ‘अय’, ओ को ‘अव’ और औ का ‘आव’ हो जाता हैं| जैसे- ए + अ = अय, ऐ + अ = आयओं इत्यादि| अयादि स्वर संधि के उदाहरण-
ने + अन = नयन
गै + अक = गायक
शे + अन = शयन
पौ + अन = पावन
व्यंजन संधि किसे कहते हैं?
यदि व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या स्वर वर्ण की संधि से व्यंजन में कोई विकार उत्पन्न हो, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं| अर्थात दूसरे शब्दों में व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं| जैसे- सत् + गति = सदगति, वाक् +ईश = वागीश इत्यादि|
व्यंजन संधि के कुछ नियम होते हैं-
यदि ‘म्’ के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है| या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है। जैसे-
अहम् + कार = अहंकार
सम् + गम = संगम
यदि ‘त्-द्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘त्-द्’ ‘लू’ में बदल जाते है और ‘न्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘न्’ का अनुनासिक के बाद ‘लू’ हो जाता है। जैसे-
उत् + लास = उल्लास
यदि ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प’, के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये, या, य, र, ल, व, या कोई स्वर आये, तो ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्, ‘त्’, ‘प’, के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे-
जगत् + आनन्द = जगदानन्द
दिक्+भ्रम = दिगभ्रम
तत् + रूप = तद्रूप
वाक् + जाल = वगजाल
अप् + इन्धन = अबिन्धन
षट + दर्शन = षड्दर्शन
सत्+वाणी = सदवाणी
अच+अन्त = अजन्त
यदि ‘क्’, ‘च्, ‘ट्, ‘त्’, ‘प’, के बाद ‘न’ या ‘म’ आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं। जैसे-
अप् + मय = अम्मय
जगत् + नाथ = जगत्राथ
उत् + नति = उत्रति
षट् + मास = षण्मास
सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में शकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है। जैसे-
रामस् + शेते = रामश्शेते
सत् + चित् = सच्चित्
महत् + छात्र = महच्छत्र
महत् + णकार = महण्णकार
बृहत् + टिट्टिभ = बृहटिट्टिभ
यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद ‘ह’ आये, तो ‘ह’ पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और ‘ह’ के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण। जैसे-
उत्+हत = उद्धत
उत्+हार = उद्धार
वाक् + हरि = वाग्घरि
हस्व स्वर के बाद ‘छ’ हो, तो ‘छ’ के पहले ‘च्’ जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद ‘छ’ होने पर यह विकल्प से होता है। जैसे-
परि+छेद = परिच्छेद
शाला + छादन = शालाच्छादन
विसर्ग संधि किसे कहते हैं
विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन की संधि को विसर्ग संधि कहते हैं| जैसे- दुः + आत्मा = दुरात्मा, दुः + गंध = दुर्गन्ध| विसर्ग संधि के कुछ नियम होते हैं, जिसे निचे दिया गया हैं –
यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसन्धि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
यशः+ धरा = यशोधरा
पुरः+हित = पुरोहित
मनः+ योग = मनोयोग
सरः+वर = सरोवर
पयः + द = पयोद
मनः + विकार = मनोविकार
पयः+धर = पयोधर
मनः+हर = मनोहर
वयः+ वृद्ध = वयोवृद्ध
यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग का ष् हो जाता है। जैसे-
निः + पाप = निष्पाप
दुः + कर = दुष्कर
निः + फल = निष्फल
यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और परे क, ख, प, फ मे से कोइ वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है। जैसे-
पयः+पान = पयः पान
प्रातःकाल = प्रातः काल
यदि ‘इ’ – ‘उ’ के बाद विसर्ग हो और इसके बाद ‘र’ आये, तो ‘इ’ – ‘उ’ का ‘ई’ – ‘ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। जैसे-
निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस
यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है। जैसे-
निः + गुण = निर्गुण
निः+धन = निर्धन
दुः+नीति = दुर्नीति
निः+झर = निर्झर
दुः+गन्ध = दुर्गन्ध
यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ-श’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट-ठ-ष’ हो तो ‘ष्’ और ‘त-थ-स’ हो तो ‘स्’ हो जाता है। जैसे-
निः+चय = निश्रय
निः+शेष = निश्शेष
निः+तार = निस्तार
निः+सार = निस्सार
यदि विसर्ग के आगे-पीछे ‘अ’ हो तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओ’ हो जाता है और विसर्ग के बादवाले ‘अ’ का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का चिह्न (S) लगा दिया जाता है। जैसे-
प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय
यशः+अभिलाषी = यशोऽभिलाषी
संधि विच्छेद (Sandhi vichchhed) किसे कहते हैं?
संधि किये गए शब्दों को अलग – अलग करके पहले की तरह करना संधि विच्छेद (sandhi vichchhed) कहा जाता हैं| संधि दो शब्दों को मिलती हैं, लेकिन संधि विच्छेद दोनों शब्दों को उसके पहले स्वरुप में बदल देता हैं| संधि विच्छेद के उदाहरण निचे दिया गया है-
शब्द
संधि
यथा + उचित
यथोचित
महा + ऋषि
महर्षि
संधि
संधि विच्छेद
यथोचित
यथा + उचित
महर्षि
महा + ऋषि
संधि विच्छेद
ऊपर दिए गए उदाहरण में यथा + उचित और महा + ऋषि को मिलाकर यथोचित और महर्षि शब्द बना हैं, जो कि संधि (Sandhi) को दर्शाता हैं| तथा इन दोनों संधि को अलग अलग कर दिया जाये तो वह संधि विच्छेद (Sandhi vichchhed) को दर्शाता हैं|
संधि (sandhi) के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जो ज्यादातर एग्जाम में पूछे जाते हैं- संधि विच्छेद कीजिये|
निचे संधि (sandhi) का चार्ट दिया गया हैं, जिसमे शब्दों का संधि विच्छेद (sandhi viched) और उस संधि का नाम भी लिखा गया हैं-
संधि
संधि विच्छेद
संधि का नाम
अत्यधिक
अति + अधिक
स्वर संधि
विचारोत्तेजक
विचार + उत्तेजक
स्वर संधि
दिवसावसान
दिवस + अवसान
स्वर संधि
रक्ताभ
रक्त + आभ
स्वर संधि
नीरस
निः + रस
विसर्ग संधि
अनादि
अन + आदि
स्वर संधि
मनोहर
मनः + हर
विसर्ग संधि
महोदधि
महा + उदधि
स्वर संधि
अनाथालय
अनाथ + आलय
स्वर संधि
छन्दावर्तन
छन्द + आवर्तन
स्वर संधि
अंतर्भूत
अन्तः + भूत
स्वर संधि
संवेदनात्मक
संवेदन + आत्मक
स्वर संधि
परमावश्यक
परम + आवश्यक
स्वर संधि
इच्छानुसार
इच्छा + अनुसार
स्वर संधि
राजेन्द्र
राजा + इन्द्र
स्वर संधि
नीलोत्पल
नील + उत्पल
स्वर संधि
अधिकांश
अधिक + अंश
स्वर संधि
हिमाच्छादित
हिम + आच्छादित
व्यंजन संधि
देशोद्धार
देश + उद्धार
स्वर संधि
तिमिरांचल
तिमिर + अंचल
स्वर संधि
तरंगाघात
तरंग + आघात
स्वर संधि
अनागत
अन + आगत
स्वर संधि
अतिश्योक्ति
अतिश्य + उक्ति
स्वर संधि
महाशय
महान + आशय
स्वर संधि
हिमालय
हिम + आलय
स्वर संधि
कुटोल्लास
कुट + उल्लास
स्वर संधि
सज्जन
सत् + जन
व्यंजन संधि
दक्षिणेश्वर
दक्षिण + ईश्वर
स्वर संधि
यद्यपि
यदि + अपि
स्वर संधि
स्वागत
सु + आगत
स्वर संधि
नीरोग
निः + रोग
विसर्ग संधि
संधि विच्छेद और संधि का नाम
FAQs
संधि (Sandhi) के कितने भेद हैं?
संधि के भेद तीन हैं- स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि|
क्या संधि (Sandhi) और संधि विच्छेद में अंतर हैं?
संधि और संधि विच्छेद में एक मूल अंतर यह हैं, कि संधि दो शब्दों को मिलती हैं, लेकिन संधि विच्छेद दोनों शब्दों को उसके पहले स्वरुप में बदल देता हैं| जैसे- महा + आत्मा = महात्मा| इसमें महत्मा शब्द संधि हैं, क्युकि यह दो शब्दों को जोड़ रहा हैं| तथा महा + आत्मा यह दोनों शब्द संधि विच्छेद हैं, क्युकि यह दोनों शब्दों को अलग कर रहे हैं|
पवन का संधि विच्छेद क्या होगा?
पवन का संधि विच्छेद पो+ अन होगा|
संधि के उदाहरण दीजिये?
संधि के उदाहरण- निः + रोग = नीरोग भानु + उदय = भानूदय अनु + अय = अन्वय षट + दर्शन = षड्दर्शन शिव + आलय = शिवालय देव + ऋषि = देवर्षि उत्+हार = उद्धार
प्रत्यय (Pratyay) वह शब्दांश हैं, जो किसी धातु या अन्य शब्द के अंत में जुड़कर शब्द के अर्थ को बदल देता हैं या नया शब्द बनाता हैं| प्रत्यय के उदाहरण –
सुगंध + इक = सुगन्धित
लोहा + आर = लुहार
लड़ + आका = लड़ाका
पागल + पन = पागलपन
होन + हार = होनहार
पठ + अक = पाठक
ऊपर दिए गए उदाहरण से स्पष्ट हैं, कि ‘प्रत्यय’ (Pratyay) अन्य शब्दों में जुड़ते हैं और फिर नए नए शब्दों की रचना करते हैं| उपसर्ग और प्रत्यय में एक मैन अंतर हैं, कि उपसर्ग शब्द के शुरुआत में जुड़ते हैं, और प्रत्यय शब्द के अंत में जुड़ते हैं|
प्रत्यय का अर्थ
प्रत्यय (Pratyay) दो शब्दों से मिलकर बनता हैं- प्रति + अय| प्रति का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में’ और अय का अर्थ ‘चलने वाला’ होता हैं| जिन शब्दों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता वे किसी शब्द के पीछे लगकर उसके अर्थ में बदलाव कर देते हैं| अर्थात प्रत्यय का अपना अर्थ नहीं होता हैं| प्रत्यय अविकारी शब्दांश होते हैं, जो शब्दों के बाद में जोड़े जाते हैं| कभी कभी प्रत्यय (Pratyay) लगाने से अर्थ में कोई बदलाव नहीं होता हैं|
प्रत्यय (Pratyay) कितने प्रकार के होते हैं?
क्रिया तथा दूसरे शब्दों से जुड़ने के आधार पर प्रत्यय (Pratyay) के दो प्रकार होते हैं| इन प्रत्यय से बने शब्द को ‘कृदंत’ एवं ‘तद्धितांत’ कहते हैं| प्रत्यय के दो प्रकार होते हैं-
कृत्त प्रत्यय
तद्धित प्रत्यय
कृत्त प्रत्यय
क्रिया से जुड़नेवाले प्रत्यय को ‘कृत्त प्रत्यय’ कहते हैं, एवं इनसे बने शब्द को ‘कृदंत’ कहते हैं| ये प्रत्यय क्रिया को नया अर्थ देते हैं| कृत्त प्रत्यय के योग से संज्ञा और विशेषण शब्दों की रचना होती हैं| उदहारण-
चाट + नी = चटनी
लिख + अक = लेखक
कृत्त प्रत्यय के प्रकार
कृत्त प्रत्यय चार प्रकार के होते हैं-
कर्तृवाचक कृत्त प्रत्यय: जिस शब्द से किसी के कार्य को करने वाले का बोध हो, उसे कर्तृवाचक कृत्त प्रत्यय कहते हैं| उदहारण-
धातु
प्रत्यय
शब्द
क्रिया का कर्ता
भूल
अक्कड़
भुलक्कड़
जो भूलता हैं
उड़
अंकू
उड़ंकू
जो उड़ता हैं
खेल
आड़ी
खेंलाड़ी
जो खेलता हैं
लूट
एरा
लुटेरा
जो लुटता हैं
कर्तृवाचक कृत्त प्रत्यय
कर्मवाचक कृत्त प्रत्यय: जिस शब्द से बनने वाले शब्दों से किसी कर्म का बोध हो, उसे कर्मवाचक कृत्त प्रत्यय कहते हैं|
धातु
प्रत्यय
शब्द
क्रिया का कर्ता
सूँघ
नी
सुँघनी
जिसे सुँघा जाय
खेल
औना
खिलौना
जिसे खेला जाय
समृ
अनीय
स्मरणीय
जिसे स्मरण किया जाय
कृ
त्वय
कर्तव्य
जिसे किया जाय
कर्मवाचक कृत्त प्रत्यय
करणवाचक कृत्त प्रत्यय: जिस प्रत्यय की वजह से बने शब्द से क्रिया के कारण का बोध होता हैं, उसे करणवाचक कृत्त प्रत्यय कहते हैं|
धातु
प्रत्यय
शब्द
क्रिया का कर्म
झाड़
ऊ
झाडू
जिससे झाड़ा जाय
कस
औटी
कसौटी
जिससे कसा जाय
रेत
ई
रेती
जिससे रेता जाय
बेल
न
बेलन
जिससे बेला जाय
करणवाचक कृत्त प्रत्यय
भाववाचक कृत्त प्रत्यय: जिस प्रत्यय के जुड़ने से भाववाचक संज्ञाएँ का बोध हो, उसे भाववाचक कृत्त प्रत्यय कहते हैं|
धातु
प्रत्यय
शब्द
क्रिया की प्रक्रिया/भाव
चढ़
आई
चढ़ाई
चढ़ने की क्रिया/भाव
पूज
आपा
पुजापा
पूजने की क्रिया /भाव
हँस
ई
हँसी
हँसने की क्रिया/भाव
चिल्ल
आहट
चिल्लाहट
चिल्लाने की क्रिया/भाव
भाववाचक कृत्त प्रत्यय
तद्धित प्रत्यय
धातुओं को छोड़कर अन्य दूसरे शब्दों में जुड़नेवाले प्रत्ययों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं, एवं इनसे बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं| कृत प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय में मूल अंतर यह हैं, कि कृत प्रत्यय सिर्फ धातुओं में लगते हैं और तद्धित प्रत्यय धातुओं को छोड़कर संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में लगते हैं| उदहारण-
राष्ट्र + ईय = राष्ट्रीय
पीछे + ला = पिछला
तद्धित प्रत्यय के प्रकार
तद्धित प्रत्यय को चार भागो में बटा गया हैं-
संज्ञा से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
विशेषण से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
संज्ञा से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
क्रिया विशेषण से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
संज्ञा से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
संज्ञा से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय चार प्रकार के होते हैं- लघुतावाचक तद्धित प्रत्यय: इस प्रत्यय से छोटेपन या प्यार का बोध होता हैं| जैसे- इया, डा, री इत्यादि| उदाहरण-
पेशा या जातिवाचक तद्धित प्रत्यय: इस प्रत्यय के द्वारा जीविका चलाने का बोध होता हैं| जैसे- गर, दार, हारा, एरा इत्यादि| उदाहरण-
शब्द (संज्ञा)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (संज्ञा)
सोना
आर
सोनार
लिपि
क
लिपिक
जादू
गर
जादूगर
चित्र
एरा
चित्तेरा
पेशा या जातिवाचक तद्धित प्रत्यय
सम्बन्धवाचक या अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय: इस प्रत्यय से बने शब्द संतान के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं| जैसे- आई, ई, पा इत्यादि| उदाहरण-
शब्द (संज्ञा)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (संज्ञा)
दशरथ
इ
दाशरथि
कुंती
एय
कौन्तेय
सम्बन्धवाचक या अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय
विशेषण से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
कुछ प्रत्यय ऐसे होते हैं, जो विशेषण शब्दों में लगकर भाववाचक संज्ञाएँ बनाते हैं| जैसे- आहट, त्व, पा आई इत्यादि| उदाहरण-
शब्द (विशेषण)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (संज्ञा)
अच्छा
आई
अच्छाई
खुश
ई
खुशी
लघु
ता
लघुता
पीला
पन
पीलापन
विशेषण से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
संज्ञा से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
संज्ञा से विशेषण बनाने वाले प्रत्यय चार प्रकार के होते हैं- गुणवाचक तद्धित प्रत्यय: इसमें गुण, धर्म इत्यादि का बोध कराने वाले शब्द बनते हैं| जैसे- आ, ईला, इत्यादि| उदाहरण-
शब्द (संज्ञा)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (विशेषण)
गुलाब
ई
गुलाबी
नमक
इन
नमकीन
प्यास
आ
प्यासा
काँटा
इला
कँटीला
गुणवाचक तद्धित प्रत्यय
स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय: इस प्रत्यय के लगने से स्थान से संबध व्यक्ति या वस्तु का बोध होता हैं| जैसे- इया, ई, एलू इत्यादि| उदाहरण-
शब्द (संज्ञा)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (विशेषण)
घर
एलू
घरेलू
पटना
इया
पटनिया
जापान
ई
जापानी
बाजार
ऊ
बाजारू
स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय
रिश्ताबोधक तद्धित प्रत्यय: इन प्रत्ययों के लगने से किसी न किसी रिश्ते का बोध होता हैं| जैसे- एरा इत्यादि| उदाहरण- शब्द(संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
शब्द (संज्ञा)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (विशेषण)
मौसा
एरा
मौसेरा
चाचा
एरा
चचेरा
रिश्ताबोधक तद्धित प्रत्यय
सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय: इन प्रत्ययों के लगने से व्यक्ति या वस्तु से सम्बंधित सम्बन्ध का बोध होता हैं| जैसे- इक, आना इत्यादि| उदाहरण- शब्द(संज्ञा) प्रत्यय तद्धितांत रूप (विशेषण)
शब्द (संज्ञा)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (विशेषण)
धर्म
इक
धार्मिक
मर्द
आना
मर्दाना
सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय
क्रिया विशेषण से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
कुछ प्रत्यय क्रिया विशेषण में लगकर विशेषण भी बनाते हैं| जैसे- ला इत्यादि| उदाहरण-
शब्द (क्रिया विशेषण)
प्रत्यय
तद्धितांत रूप (विशेषण)
निचे
ला
निचला
पीछे
ला
पिछला
क्रिया विशेषण से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय
प्रत्यय और उपसर्ग में क्या अंतर है?
उपसर्ग और प्रत्यय का एक मुलभुत अंतर यह होता हैं, कि उपसर्ग किसी भी शब्द के शुरुआत में जुड़ता हैं, और प्रत्यय किसी भी शब्द के अंत में जुड़ता हैं|
परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न- प्रत्यय अलग कीजिये
निचे परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रत्यय के प्रत्यय के 20 उदाहरण की सूचि दी गई हैं, जिसमे शब्द में से प्रत्यय को पृथक करना हैं-
शब्द
प्रत्यय
अनंतता
ता
वर्षों
ओं
कोमलता
ता
अवकाशवाली
वाली
व्यक्तिगत
गत
नूपुरों
ओं
कविताएँ
एँ
सोचकर
कर
पथरीली
ई
बदलनी
ई
सभ्यता
ता
छुट्टियाँ
ईयाँ
आतंकित
इत
ईमानदारी
ई
ग्रामीण
ईन
आगुन्तकों
ओं
सम्बन्धी
ई
स्त्रियाँ
ईयाँ
पुकारकर
कर
नाखुनों
ओं
परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
FAQs
प्रत्यय (pratyay) की परिभाषा दो?
प्रत्यय (pratyay) उस शब्दांश को कहते हैं, जो किसी शब्द के अंत में जुड़कर उस शब्द के भिन्न अर्थ को प्रकट करता हैं|
प्रत्यय (pratyay) के कितने भेद होते हैं?
प्रत्यय (pratyay) के दो भेद होते हैं- कृत्त प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय|
तद्धित प्रत्यय के कितने भेद हैं|
तद्धित प्रत्यय के चार भेद हैं- संज्ञा से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय, विशेषण से संज्ञा बनाने वाले तद्धित प्रत्यय, संज्ञा से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय, और क्रिया विशेषण से विशेषण बनाने वाले तद्धित प्रत्यय|
प्रत्यय के 10 उदाहरण दीजिये?
प्रत्यय (pratyay) के 10 उदाहरण- हजारों- ओं प्रमाणित- इत फिरता- आ नम्रता- ता स्वदेशी- ई हँसकर- कर विचलित- इत दशाओं- ओं चौथाई- आई मलबे- ए
शब्द के जिस रूप से एक या एक से अधिक का बोध होता हैं, उसे हिंदी व्याकरण में वचन (Vachan) कहते हैं| दूसरे शब्दों में ‘वचन’ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, और क्रिया की संख्या का बोध कराता हैं| जैसे-
गोदाम में सब्जियां रखी हैं|
माली पौधे सींच रहा हैं|
इन वाक्यों में गोदाम तथा माली शब्द एक होने का और सब्जियां तथा पौधे अधिक होने का ज्ञान करा रहे हैं| इसलिए गोदाम तथा माली एक संख्या को दर्शाते हैं, तथा सब्जिया और पौधे अधिक संख्या को दर्शाते हैं|
वचन के प्रकार
वचन (Vachan) संख्या का बोध कराता हैं| इसलिए संख्या के आधार पर वचन (Vachan) के दो भेद होते हैं| पहला वह जिसमे एक व्यक्ति या वस्तु होने का बोध हो और दूसरा वह जिसमे एक से अधिक व्यक्ति या वस्तु होने का बोध हो| निचे इसकी पूरी जानकारी दी गई हैं-
एकवचन
एक वचन की परिभाषा– शब्दों के जिस रूप से एक व्यक्ति या वस्तु का बोध होता हैं, उसे एकवचन कहते हैं| जैसे- लड़का, गाय, माता, बन्दर, बकरी, संतरा, तोता इत्यादि| उदाहरण–
एक लड़का बाजार जा रहा हैं|
गाय चार रही हैं|
राधा की माता स्कूल में टीचर हैं|
बन्दर छत पर हैं|
बकरी रस्ते में चल रही हैं|
यह संतरा अच्छा नहीं हैं|
रीता के पास एक घोडा है|
मेरे पास एक तोता हैं|
बहुवचन
बहुवचन की परिभाषा– शब्दों के जिस रूप से एक से अधिक व्यक्ति या वस्तु होने का बोध हो, उसे बहुवचन कहते हैं| जैसे- लड़के, गाये, मताये, रोटियां, घरो, गाड़िया, पुस्तके इत्यादि| उदाहरण–
कुछ लड़के बाजार जा रहे हैं|
गाये चार रही हैं|
पूजा के लिए कुछ मताये मंदिर जा रही हैं|
कुछ रोटियां उसे दे दो|
कुछ घरो में साफ़ पानी नहीं आ रहा हैं|
कुछ लोग स्कूल जा रहे है|
मोहन के पास बहुत साड़ी गाड़िया हैं|
कुछ पुस्तके उससे ले लो|
वचन (Vachan) को कैसे पहचाने?
वचन (Vachan) की पहचान संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अथवा क्रिया के द्वारा होती हैं| हमने पहले जाना था कि, ये दो प्रकार की होती हैं- एकवचन और बहुवचन | एकवचन का अर्थ हैं- किसी एक वस्तु या व्यक्ति का बोध कराना लेकिन बहुवचन का अर्थ हैं- एक से अधिक वस्तु या व्यक्ति का बोध कराना| इसके कुछ अपवाद भी हैं|
जहाँ पर यह पूर्ण रूप से लागू नहीं होते हैं| इसका मतलब यह अपने भाव, आदर इत्यादि को प्रकट करने के लिए एकवचन के स्थान पर बहुवचन का तथा बहुवचन के स्थान पर एकवचन का उपयोग किया जाता हैं| निचे उदाहरण के साथ इसकी जानकारी दी गई हैं-
आदर प्रकट करने के लिए|
आदर प्रकट करने के लिए एकवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग किया जाता हैं| जैसे-
माता जी, आप कब आयी|
मेरे पिताजी कोलकाता गए हैं|
टीचर पढ़ा रहे हैं|
नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री हैं|
कुछ ऐसे शब्द जो हमेशा एकवचन में रहते हैं|
हिंदी के कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जो हमेशा एकवचन में रहते हैं| जैसे-
पानी मत गिराओ, वरना सारा पानी ख़तम हो जायगा|
उसे बहुत क्रोध आ रहा हैं|
नेता को सदैव अपनी जनता का ख्याल रखना चाहिए|
कुछ संज्ञाएँ जो हमेशा एकवचन में प्रयुक्त होता हैं|
द्रव्यवाचक, भाववाचक, तथा व्यक्तिवाचक संज्ञाय हमेशा एकवचन में प्रयुक्त होता हैं| जैसे-
चावल बहुत महंगा हो गया हैं|
अच्छाई का सदा जित होता हैं|
कर्म ही पूजा हैं|
आरती बुद्धिमान हैं|
कुछ ऐसे शब्द जो हमेशा बहुवचन में रहते हैं|
हिंदी के कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जो हमेशा बहुवचन में रहते हैं| जैसे-
आजकल रेशमा के बाल बहुत झड़ रहे हैं|
किट्टू जब से अफसर बना हैं, तब से उसके दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं|
आजकल हर एक वस्तु के दाम बढ़ गए हैं|
वचन (Vachan) बनाने के नियम
वचन बनाने के कुछ नियम होते हैं| एकवचन से बहुवचन बनाना और बहुवचन से एक वचन बनाना ज्यादा सरल भी नहीं हैं, और ज्यादा कठिन भी नहीं हैं|
एकवचन से बहुवचन बनाने के नियम
एकवचन से बहुवचन बनाने के कुछ नियम निचे दिए ज रहे हैं, जिससे स्टूडेंट्स को समझने में और आसानी हो|
आकारांत पुल्लिंग शब्दों में ‘आ’ के स्थान पर ‘ए’ लगाने पर
कपडा – कपडे
लड़का- लड़के
पत्ता- पत्ते
बेटा- बेटे
कुत्ता- कुत्ते
आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में ‘अ’ के स्थान पर ‘ऐं’ लगाने पर
बात- बाते
रात- राते
चादर- चादरे
बहन- बहने
सड़क- सड़के
आकारांत स्त्रीलिंग एकवचन संज्ञा शब्दों के अंत में ‘एँ’ लगाने पर
कन्या- कन्याएँ
कामना- कामनाएँ
वस्तु- वस्तुएँ
जब शब्दों का दो बार प्रयोग किया जाता हैं|
भाई- भाई- भाई
गांव- गांव- गांव
घर- घर- घर
बहुवचन से एकवचन बनाने के नियम
बहुवचन से एकवचन बनाने के कुछ नियम निचे दिए ज रहे हैं, जिससे स्टूडेंट्स को समझने में और आसानी हो|
जिन संज्ञाओ के अंत में ‘या’ के ऊपर चंद्र बिंदु होता हैं, उसमे सिर्फ ‘या’ लगाने पर
बिन्दियाँ- बिंदिया
गुड़ियाँ- गुड़िया
चिड़ियाँ- चिड़िया
डिबियाँ- डिबिया
इकारांत स्त्रीलिंग शब्दों में ‘याँ’ हटाने पर
नदियाँ- नदी
लड़कियाँ- लड़की
रीतियाँ- रीति
कुछ शब्दों में गुण, वर्ण, भाव आदि शब्द हटाने पर
मित्रवर्ग- मित्र
व्यापारीगण- व्यापारी
सुधिजन- सुधि
आकारांत पुल्लिंग शब्दों में ‘ए’ के स्थान पर ‘आ’ लगाने पर
तारे- तारा
मुर्गे- मुर्गा
जूते- जूता
कपडे- कपडा
वचन (Vachan) परिवर्तन | वचन बदलिए
एकवचन का बहुवचन में परिवर्तन तथा बहुवचन का एकवचन में परिवर्तन के कुछ उदाहरण निचे चार्ट में दिए गए हैं-
एकवचन
बहुवचन
पुस्तक
पुस्तके
आँख
आँखे
अलमारी
अलमारियाँ
रात
राते
कलम
कलमे
गाय
गाये
वधू
वधुएँ
कवि
कविगण
दवाई
दवाइयाँ
साधु
साधुओ
घर
घरो
रुपया
रूपये
लड़का
लड़के
स्त्री
स्त्रियाँ
नदी
नदियाँ
शाखा
शाखाएँ
गति
गतियाँ
घोडा
घोड़े
बच्चा
बच्चे
गली
गलियो
वचन परिवर्तन
FAQs
वचन के उदाहरण दीजिये?
वचन के कुछ उदाहरण- मैदान में ‘गाये’ चार रही हैं| ‘लड़की;’ खेलती हैं| ट्रक में ‘सब्जियाँ’ रखी हैं|
वचन कितने प्रकार के होते हैं?
वचन दो प्रकार की होती हैं- एकवचन और बहुवचन|
एक वचन किसे कहते हैं?
संज्ञा के जिस रूप से किसी व्यक्ति, वस्तु के एक या एक से अधिक होने का पता चले उसे वचन कहते हैं|
लिंग (Ling) संस्कृत भाषा का एक शब्द हैं, जिसका अर्थ होता हैं- निशान या चिन्ह| अर्थात लिंग संज्ञा शब्दो में पुरुष या स्त्री जाती होने का बोध कराता हैं| जिस संज्ञा शब्द से व्यक्ति की जाती का पता चलता हैं, उसे लिंग कहते हैं| लिंग के माध्यम से ही हमें यह ज्ञात हो पता हैं, कि कोई भी व्यक्ति या वस्तु नर जाती का हैं, या मादा जाती का हैं| जैसे- बैल, मोर, लड़का, गाय, बकरी, लड़की इत्यादि|
लिंग के भेद
पुरुष तथा स्त्री जाती का बोध कराने के लिए लिंग के दो भेद होते हैं-
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग
पुल्लिंग (Pulling)
जिन शब्दो से पुरुष जाती का बोध होता हैं, उसे पुल्लिंग (Pulling) कहते हैं| दूसरे शब्दों में पुल्लिंग संज्ञा के शब्दों से पुरुष जाती का बोध होता हैं| जैसे- खटमल, पिता, घोडा, बन्दर, कुत्ता, लड़का, राजा इत्यादि|
पुल्लिंग की पहचान कैसे करे?
जिन शब्दो के अंत में अ, त्व, आ, आव, पा, पन, न, क, औडा इत्यादि प्रत्यय आये वे पुल्लिंग होते हैं| जैसे- मन, तन, राम, कृष्ण, बचपन, वन, शेर, बुढ़ापा इत्यादि| कुछ ऐसे संज्ञाए भी हैं, जो हमेशा पुल्लिंग रहती हैं| जैसे- खरगोश, चीता, खटमल, भेड़िया, मच्छर इत्यादि| पुल्लिंग की पहचान कई तरह के नमो से हो सकता हैं, जैसे- दिन, पेड़, पर्वत, सागर, फूल इत्यादि| इसका सम्पूर्ण जानकारी निचे दिया गया हैं|
नगरों के नाम- दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता चेन्नई इत्यादि|
फलो के नाम- केला, आम, अमरुद इत्यादि|
अनाजों के नाम- गेहूं, बाजरा, चना, इत्यादि|
फूलो के नाम- कमल, गुलाब, गेंदा इत्यादि|
सागर के नाम- हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर, अरब सागर इत्यादि|
शरीर के अंगो के नाम- हाथ, पैर, अंगूठा, सिर, मुँह, दांत इत्यादि|
धातुओं के नाम- ताम्बा, लोहा, सोना, पारा इत्यादि|
स्त्रीलिंग (Striling)
जिन शब्दो से स्त्री जाती का बोध होता हैं, उसे स्त्रीलिंग (Striling) कहते हैं| दूसरे शब्दों में स्त्रीलिंग संज्ञा के शब्दों से स्त्री जाती का बोध होता हैं| जैसे- माता, लड़की, बकरी, लक्ष्मी, औरत इत्यादि|
स्त्रीलिंग की पहचान कैसे करे?
जिन शब्दों के अंत में ख, ट, वट, हट, आनी, आ, ता, आई, आवट, इया, आहट इत्यादि प्रत्यय आये वे स्त्रीलिंग होते हैं| जैसे- आहाट, शत्रुता, राख, कड़वाहट, सजावट इत्यादि| स्त्रीलिंग में भी कुछ ऐसे संज्ञाए हैं, जो हमेशा स्त्रीलिंग रहती हैं| जैसे- मक्खी, तितली, कोयल, मछली, मैना इत्यादि| स्त्रीलिंग की पहचान कई तरह के नामो से हो सकता हैं| जैसे- भाषा, मशाले, नदिया, पुस्तक इत्यादि| इसका सम्पूर्ण जानकारी निचे दिया गया हैं|
नक्षत्रो के नाम- भरणी, रेवती, चित्रा इत्यादि|
बोलियों के नाम- ब्रज, बुंदेली, हिंदी इत्यादि|
नदियों के नाम- गंगा, यमुना, रावी, कावेरी, गोदावरी इत्यादि|
पुस्तकों के नाम- रामायण, गीता, कुरान इत्यादि|
आहारों के नाम- रोटी, सब्जी, दाल इत्यादि|
आभूषणो के नाम- चूड़ी, बिंदी, पायल, माला, नथ इत्यादि|
परिधानों के नाम- सलवार, चुन्नी, साड़ी, कमीज़ इत्यादि|
मसालों के नाम- लौंग, हल्दी, मिर्च, दालचीनी, चाय इत्यादि|
वह कौन-कौन से शब्द हैं, जो पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग दोनों में प्रयुक्त होते हैं?
हिंदी में ऐसे कई सारे शब्द हैं जिसका प्रयोग पुल्लिंग (Pulling) और स्त्रीलिंग (Striling) दोनों के लिए सामान रूप से किया जाता हैं| इन शब्दों में ऐसा कोई भेद नहीं हैं, जो सिर्फ केवल पुरुष के लिए इस्तमाल किया जाय या सिर्फ स्त्री के लिए इस्तमाल किया जाय| इन शब्दों का सामान रूप से प्रयोग किया जाता हैं| निचे सारे शब्द दिए गए हैं-
प्रधानमंत्री
मुख्यमंत्री
राष्ट्रपति
दोस्त
उपराष्ट्रपति
मेहमान
मंत्री
बर्फ
चित्रकार
मैनेजर
प्रोफेसर
शिशु
पत्रकार
गवर्नर
वकील
100 से अधिक पुल्लिंग और स्त्रीलिंग के शब्द
निचे 100 से अधिक पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्दों का विवरण दिया गया हैं-
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग
हलवाई
हलवाईन
गुरु
गुरुआइन
तोता
मादा तोता
पालक
पालिका
बालक
बालिका
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मोरनी
चोर
चोरनी
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हथिनी
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100 से अधिक पुल्लिंग और स्त्रीलिंग के शब्द
FAQs
लिंग को कितने भागो में बाटा गया हैं?
लिंग को दो भागो में बाटा गया हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग|
कुछ पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्दों के उदाहरण दो?
कुछ पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्दों के उदाहरण- पुल्लिंग– तपस्वी, माता, सांप इत्यादि| स्त्रीलिंग– तपस्विनी, पिता, साँपिन इत्यादि|