Sandhi kise kahate hain: संधि किसे कहते हैं, संधि विच्छेद एवं इसके प्रकार उदाहरण सहित 2024-25

Sandhi

संधि (Sandhi) किसे कहते हैं?

दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनके रूप और उच्चारण में जो परिवर्तन होता हैं, उसे संधि (Sandhi) कहते हैं| दूसरे शब्दों में संधि की परिभाषा (sandhi ki paribhasha) का अर्थ हैं, जब दो शब्द मिलते हैं, तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन करता हैं, वह संधि कहलाता हैं|

संधि दो शब्दों से मिलकर बना हैं- सम+धि, जिसका अर्थ ‘मिलना’ होता हैं| इसमें दो अक्षरों के मेल से तीसरे शब्द की रचना होती हैं|

संधि के प्रकार

संधि (Sandhi) के तीन भेद हैं-

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

स्वर संधि किसे कहते हैं?

दो स्वरों के आपस में मिलने से जो रूप परिवर्तन होता हैं, उसे स्वर संधि कहते हैं| जैसे- भाव + अर्थ = भावार्थ|
ऊपर दिए गए शब्दों में ‘भाव’ शब्द का अंतिम स्वर ‘अ’ एवं ‘अर्थ’ शब्द का पहला स्वर ‘अ’ दोनों शब्दों के मिलने से ‘आ’ स्वर की उत्पत्ति हुई| जिससे “भावार्थ” शब्द का निर्माण हुआ| इसके अन्य उदाहरण निचे दिए गए हैं-

  • विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
  • महा + ईश = महेश
  • मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र
  • सूर्य + उदय = सूर्योदय
  • कवि + ईश्वर = कवीश्वर

स्वर संधि के प्रकार

स्वर संधि पांच प्रकार के होते हैं-

  1. दीर्घ स्वर संधि
  2. गुण स्वर संधि
  3. वृद्धि स्वर संधि
  4. यण स्वर संधि
  5. अयादि स्वर संधि
दीर्घ स्वर संधि

दो सुजातीय स्वर के आस – पास आने से जो स्वर बनता हैं, उसे दीर्घ संधि कहते हैं| इसे हस्व संधि भी कहा जाता हैं| जैसे- अ/आ + अ/आ = आ, इ/ई + इ/ई = ई, उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ ऋ + ऋ = ऋ इत्यादि | दीर्घ संधि के उदाहरण-

  • गिरि + ईश = गिरीश
  • भानु + उदय = भानूदय
  • शिव + आलय = शिवालय
  • कोण + अर्क = कोणार्क
  • देव + असूर = देवासूर
  • गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र
  • पितृ + ऋण = पितृण
गुण स्वर संधि

जब अ, आ के साथ इ, ई हो तो ‘ए’ बनता हैं| जब अ, आ के साथ उ, ऊ हो तो ‘ओ’ बनता हैं| जब आ, आ के साथ ऋ हो तो ‘अर’ बनता हैं, उसे गुण संधि कहते हैं| जैसे- अ + इ = ए, अ + उ = ओ, आ + उ = ओ, अ + ई = ए इत्यादि| गुण संधि के उदाहरण-

  • नर + इंद्र = नरेंद्र
  • भारत + इंदु = भारतेन्दु
  • देव + ऋषि = देवर्षि
  • सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
वृद्धि स्वर संधि

जब अ, आ के साथ ए, ऐ हो तो, ‘ऐ’ बनता हैं| और जब अ, आ के साथ ओ, औ हो तो ‘औ’ बनता हैं| उसे वृद्धि स्वर संधि कहते हैं| जैसे- अ + ए = ऐ, आ + ए = ऐ, आ + औ = औ, आ + ओ = औ इत्यादि| वृद्धि स्वर संधि के उदाहरण-

  • मत + एकता = मतैकता
  • एक + एक = एकैक
  • सदा + एव = सदैव
  • महा + ओज = महौज
यण स्वर संधि

यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद कोई अलग स्वर आये, तो इ – ई का ‘यू’, उ – ऊ का ‘व्’ और ऋ का ‘र’ बनता हैं| जैसे- इ + अ = य, इ + ऊ = यू , उ + आ = वा, उ + औ = वौ इत्यादि| यण स्वर संधि के उदाहरण

  • परी + आवरण = पर्यावरण
  • अनु + अय = अन्वय
  • सु + आगत = स्वागत
  • अभि + आगत = अभ्यागत
अयादि स्वर संधि

यदि ए, ऐ, ओ, और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो ए को ‘अय’, ऐ को ‘अय’, ओ को ‘अव’ और औ का ‘आव’ हो जाता हैं| जैसे- ए + अ = अय, ऐ + अ = आयओं इत्यादि| अयादि स्वर संधि के उदाहरण-

  • ने + अन = नयन
  • गै + अक = गायक
  • शे + अन = शयन
  • पौ + अन = पावन

व्यंजन संधि किसे कहते हैं?

यदि व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या स्वर वर्ण की संधि से व्यंजन में कोई विकार उत्पन्न हो, तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं| अर्थात दूसरे शब्दों में व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहते हैं| जैसे- सत् + गति = सदगति, वाक् +ईश = वागीश इत्यादि|

व्यंजन संधि के कुछ नियम होते हैं-

  • यदि ‘म्’ के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है| या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है। जैसे-
    • अहम् + कार = अहंकार
    • सम् + गम = संगम
  • यदि ‘त्-द्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘त्-द्’ ‘लू’ में बदल जाते है और ‘न्’ के बाद ‘ल’ रहे तो ‘न्’ का अनुनासिक के बाद ‘लू’ हो जाता है। जैसे-
    • उत् + लास = उल्लास
  • यदि ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्’, ‘त्’, ‘प’, के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये, या, य, र, ल, व, या कोई स्वर आये, तो ‘क्’, ‘च्’, ‘ट्, ‘त्’, ‘प’, के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे-
    • जगत् + आनन्द = जगदानन्द
    • दिक्+भ्रम = दिगभ्रम
    • तत् + रूप = तद्रूप
    • वाक् + जाल = वगजाल
    • अप् + इन्धन = अबिन्धन
    • षट + दर्शन = षड्दर्शन
    • सत्+वाणी = सदवाणी
    • अच+अन्त = अजन्त
  • यदि ‘क्’, ‘च्, ‘ट्, ‘त्’, ‘प’, के बाद ‘न’ या ‘म’ आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं। जैसे-
    • अप् + मय = अम्मय
    • जगत् + नाथ = जगत्राथ
    • उत् + नति = उत्रति
    • षट् + मास = षण्मास
  • सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में शकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है। जैसे-
    • रामस् + शेते = रामश्शेते
    • सत् + चित् = सच्चित्
    • महत् + छात्र = महच्छत्र
    • महत् + णकार = महण्णकार
    • बृहत् + टिट्टिभ = बृहटिट्टिभ
  • यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद ‘ह’ आये, तो ‘ह’ पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और ‘ह’ के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण। जैसे-
    • उत्+हत = उद्धत
    • उत्+हार = उद्धार
    • वाक् + हरि = वाग्घरि
  • हस्व स्वर के बाद ‘छ’ हो, तो ‘छ’ के पहले ‘च्’ जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद ‘छ’ होने पर यह विकल्प से होता है। जैसे-
    • परि+छेद = परिच्छेद
    • शाला + छादन = शालाच्छादन

विसर्ग संधि किसे कहते हैं

विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन की संधि को विसर्ग संधि कहते हैं| जैसे- दुः + आत्मा = दुरात्मा, दुः + गंध = दुर्गन्ध| विसर्ग संधि के कुछ नियम होते हैं, जिसे निचे दिया गया हैं –

  • यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का ‘उ’ हो जाता है और यह ‘उ’ पूर्ववर्ती ‘अ’ से मिलकर गुणसन्धि द्वारा ‘ओ’ हो जाता है। जैसे-
    • यशः+ धरा = यशोधरा
    • पुरः+हित = पुरोहित
    • मनः+ योग = मनोयोग
    • सरः+वर = सरोवर
    • पयः + द = पयोद
    • मनः + विकार = मनोविकार
    • पयः+धर = पयोधर
    • मनः+हर = मनोहर
    • वयः+ वृद्ध = वयोवृद्ध
  • यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग का ष् हो जाता है। जैसे-
    • निः + पाप = निष्पाप
    • दुः + कर = दुष्कर
    • निः + फल = निष्फल
  • यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और परे क, ख, प, फ मे से कोइ वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है। जैसे-
    • पयः+पान = पयः पान
    • प्रातःकाल = प्रातः काल
  • यदि ‘इ’ – ‘उ’ के बाद विसर्ग हो और इसके बाद ‘र’ आये, तो ‘इ’ – ‘उ’ का ‘ई’ – ‘ऊ’ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। जैसे-
    • निः + रोग = नीरोग
    • निः + रस = नीरस
  • यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में ‘र्’ हो जाता है। जैसे-
    • निः + गुण = निर्गुण
    • निः+धन = निर्धन
    • दुः+नीति = दुर्नीति
    • निः+झर = निर्झर
    • दुः+गन्ध = दुर्गन्ध
  • यदि विसर्ग के बाद ‘च-छ-श’ हो तो विसर्ग का ‘श्’, ‘ट-ठ-ष’ हो तो ‘ष्’ और ‘त-थ-स’ हो तो ‘स्’ हो जाता है। जैसे-
    • निः+चय = निश्रय
    • निः+शेष = निश्शेष
    • निः+तार = निस्तार
    • निः+सार = निस्सार
  • यदि विसर्ग के आगे-पीछे ‘अ’ हो तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओ’ हो जाता है और विसर्ग के बादवाले ‘अ’ का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का चिह्न (S) लगा दिया जाता है। जैसे-
    • प्रथमः + अध्याय = प्रथमोऽध्याय
    • यशः+अभिलाषी = यशोऽभिलाषी

संधि विच्छेद (Sandhi vichchhed) किसे कहते हैं?

संधि किये गए शब्दों को अलग – अलग करके पहले की तरह करना संधि विच्छेद (sandhi vichchhed) कहा जाता हैं| संधि दो शब्दों को मिलती हैं, लेकिन संधि विच्छेद दोनों शब्दों को उसके पहले स्वरुप में बदल देता हैं| संधि विच्छेद के उदाहरण निचे दिया गया है-

शब्दसंधि
यथा + उचितयथोचित
महा + ऋषिमहर्षि
संधिसंधि विच्छेद
यथोचितयथा + उचित
महर्षिमहा + ऋषि
संधि विच्छेद

ऊपर दिए गए उदाहरण में यथा + उचित और महा + ऋषि को मिलाकर यथोचित और महर्षि शब्द बना हैं, जो कि संधि (Sandhi) को दर्शाता हैं| तथा इन दोनों संधि को अलग अलग कर दिया जाये तो वह संधि विच्छेद (Sandhi vichchhed) को दर्शाता हैं|

संधि (sandhi) के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जो ज्यादातर एग्जाम में पूछे जाते हैं- संधि विच्छेद कीजिये|

निचे संधि (sandhi) का चार्ट दिया गया हैं, जिसमे शब्दों का संधि विच्छेद (sandhi viched) और उस संधि का नाम भी लिखा गया हैं-

संधिसंधि विच्छेदसंधि का नाम
अत्यधिक अति + अधिकस्वर संधि
विचारोत्तेजकविचार + उत्तेजकस्वर संधि
दिवसावसानदिवस + अवसान स्वर संधि
रक्ताभरक्त + आभ स्वर संधि
नीरसनिः + रसविसर्ग संधि
अनादि अन + आदि स्वर संधि
मनोहर मनः + हरविसर्ग संधि
महोदधिमहा + उदधि स्वर संधि
अनाथालयअनाथ + आलयस्वर संधि
छन्दावर्तनछन्द + आवर्तनस्वर संधि
अंतर्भूतअन्तः + भूतस्वर संधि
संवेदनात्मक संवेदन + आत्मकस्वर संधि
परमावश्यकपरम + आवश्यकस्वर संधि
इच्छानुसारइच्छा + अनुसारस्वर संधि
राजेन्द्रराजा + इन्द्रस्वर संधि
नीलोत्पलनील + उत्पलस्वर संधि
अधिकांशअधिक + अंश स्वर संधि
हिमाच्छादितहिम + आच्छादित व्यंजन संधि
देशोद्धारदेश + उद्धारस्वर संधि
तिमिरांचलतिमिर + अंचल स्वर संधि
तरंगाघाततरंग + आघात स्वर संधि
अनागतअन + आगतस्वर संधि
अतिश्योक्ति अतिश्य + उक्तिस्वर संधि
महाशयमहान + आशयस्वर संधि
हिमालयहिम + आलयस्वर संधि
कुटोल्लासकुट + उल्लासस्वर संधि
सज्जनसत् + जनव्यंजन संधि
दक्षिणेश्वर दक्षिण + ईश्वरस्वर संधि
यद्यपियदि + अपिस्वर संधि
स्वागतसु + आगतस्वर संधि
नीरोगनिः + रोगविसर्ग संधि
संधि विच्छेद और संधि का नाम

FAQs

संधि (Sandhi) के कितने भेद हैं?

संधि के भेद तीन हैं-
स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि|

क्या संधि (Sandhi) और संधि विच्छेद में अंतर हैं?

संधि और संधि विच्छेद में एक मूल अंतर यह हैं, कि संधि दो शब्दों को मिलती हैं, लेकिन संधि विच्छेद दोनों शब्दों को उसके पहले स्वरुप में बदल देता हैं| जैसे- महा + आत्मा = महात्मा|
इसमें महत्मा शब्द संधि हैं, क्युकि यह दो शब्दों को जोड़ रहा हैं| तथा महा + आत्मा यह दोनों शब्द संधि विच्छेद हैं, क्युकि यह दोनों शब्दों को अलग कर रहे हैं|

पवन का संधि विच्छेद क्या होगा?

पवन का संधि विच्छेद पो+ अन होगा|

संधि के उदाहरण दीजिये?

संधि के उदाहरण-
निः + रोग = नीरोग
भानु + उदय = भानूदय
अनु + अय = अन्वय
षट + दर्शन = षड्दर्शन
शिव + आलय = शिवालय
देव + ऋषि = देवर्षि
उत्+हार = उद्धार

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